धर्म क्रिया एवं धार्मिक कार्यों के लिए उत्साही रहना चाहिए . धार्मिक नीति नियमों की तनिक भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए . १ . धर्म
Month: August 2019
जैन सिलेबस : वीर्य आचार . २ : यथा शक्ति
हमे उतना ही धर्म करना चाहिए जितनी हमारे पास शक्ति है , यथा शक्ति . हमारी शक्ति की सीमा होती है . हमे हमारी सीमा
जैन सिलेबस : वीर्य आचार : १ . अनिगूहित
ज्ञान आचार , दर्शन आचार , चारित्र आचार एवं तप आचार की प्रवृतिओं में उत्साही गतिशील रहना उसे वीर्य आचार कहते है . वीर्य आचार
जैन सिलेबस : तप आचार . १२ : उत्सर्ग
चेष्टाओं को छोड़ देना यह उत्सर्ग है . मन की चेष्टा होती है . उसे छोड़ देना यह उत्सर्ग है . वचन की चेष्टा होती
जैन सिलेबस : तप आचार . ११ : ध्यान
मन को शुभ विषय में एकाग्रता पूर्वक जोड़ना चाहिए . वोही ध्यान है . तीन बातें हैं . १ . व्याख्यान , वाचना अथवा वांचन
जैन सिलेबस : तप आचार . १० : स्वाध्याय
धर्मग्रंथ का अभ्यास करते हुए मन को शुभ भावना से भावित रखना , इसे स्वाध्याय कहते है . तीन बातें हैं . १ . नए
जैन सिलेबस : तप आचार . ९ : वेयावच्च
उत्तम पुरुषों की सेवा भक्ति करना उसे वेयावच्च कहते है . तीन बातें हैं . १ . साधु साध्वीजी भगवंतों की भक्ति , आहार पानी
जैन सिलेबस : तप आचार . ८ : विनय
विनय का अर्थ है आदर की अभिव्यक्ति . विनय का अर्थ है आदर पूर्ण अभिव्यक्ति . उत्तम पुरुष एवं उपकारी जनों का विनय करना चाहिए
जैन सिलेबस : तप आचार . ७ : प्रायश्चित
तप आचार के बारह प्रकार में से प्रथम छह प्रकार को बाह्य तप कहते है . तप आचार के बारह प्रकार में से शेष छह
जैन सिलेबस : तप आचार . ६ : संलीनता
संलीनता अर्थात् विशेष स्थिरता . तीन बातें याद रखनी चाहिए . १ . मन को किसी एक शुभ विषय में इस प्रकार एकाग्र बना ले