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उवसग्गहरं चातुर्मास प्रवेश की पूर्वसंध्या

सोचा भी नहीं था कि चातुर्मास , उवसग्गहरं तीर्थ में होगा . गुजराती में एक मुहावरा है – ધાર્યું ધણીનું થાય છે . मतलब कि केवलज्ञानी ने जो देखा है , वही होता है . हम सोचे न सोचे , हम जाने न जाने – हमारी क्यां औकात है भाई . जो है वो प्रभु के हाथ में है .

प्रभु का बुलावा था , सो नागपुर से विहार हुआ , कठिन था विहार का एक एक दिन . बारिश हो नहीं रही थी . सुबह छह बजे से सूरज का प्रकोप शुरू हो जाता था . नव बजे तक , दस बजे तक विहार चलता था . ऐसी थकान चड़ जाती थी कि मानो लू लग गई हो . हालांकि अधिकांश निवास स्थान अच्छे मिलें . हाईवे कन्स्ट्रक्शन वालों के केम्प एवं टोलप्लाझा में ज्यादा दिन रहना हुआ . पर गरमी तो गरमी होती है .

जैसे परीक्षा शुरू हुई , कुछ दिनों तक चली और ख़त्म हुई वैसे विहार भी शुरू हुआ , कुछ दिनों तक चला और अब खत्म हुआ . अब दादा का सांनिध्य है . चातुर्मास प्रवेश का मुहूर्त कल है . १४ से १७ जुलाई तक आरोग्यम् में निवास रहा . कल से दादा की भूमि में निवास होगा .

उवसग्गहरं प्रभु की आंखें अद्भुत है . उन आंखों में देखते देखते हजारों बार उवसग्गहरं का पाठ करने की भावना है . दादा उपसर्गों के नाशक है – दादा को प्रार्थना करनी है कि मेरी तरफ से किसी को कोई उपसर्ग न हो , कष्ट न हो , पीडा न हो ऐसी कृपा रखना . यात्रालु आएंगें , आराधना करेंगे वह एक सामाजिक व्यवस्था है . मेरा रिश्ता केवल दादा से रहेगा .

संकुल में दिनभर स्तोत्र के उद्घोष सुनाई देते हैं : जय पार्श्वनाथ जय पार्श्वनाथ . अद्भुत एवं रोमांचक स्वरलहरी .

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