धर्मचिंतन – ६
स्वप्रेरित धर्म की आयु लंबी होती है .
अन्यप्रेरित धर्म की आयु सीमित होती है .
जिस धर्मप्रवृत्ति की
हमें दृढ आदत लग जाती है
वह धर्म स्वप्रेरणा से होता है .
जिस धर्मप्रवृत्ति की
हमें दृढ आदत लगी नहीं है
वह धर्म अन्य की प्रेरणा से होता है .
स्वप्रेरित धर्म स्वाधीन है .
अन्यप्रेरित धर्म पराधीन है .
अन्य की प्रेरणा से भी अगर
धर्म हो रहा है तो वह गलत नहीं है .
तकलीफ़ यह है कि
प्रेरणादाता के अभाव में
अन्यप्रेरित धर्म रूक जाता है .
जब कि स्वप्रेरित धर्म
प्रेरणादाता के अभाव में
रूकता नहीं है .
अपने धर्म को
सेल्फ मोटिवेटेड बनाओ .
सेल्फ मोटिवेटेड धर्म
संस्कार से होता है .
सेल्फ मोटिवेटेड धर्म का संस्कार
परलोक में साथ साथ आता है .
– पू.मुनिराज श्री प्रशमरतिविजयजी म.
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