संलीनता अर्थात् विशेष स्थिरता .
तीन बातें याद रखनी चाहिए .
१ .
मन को किसी एक शुभ विषय में इस प्रकार एकाग्र बना ले कि अन्य सभी विषयों का विस्मरण हो जाए . मन जो अलग अलग विचारों में भागता रहता है उसे शेष विचारों से मुक्त बनाए रखे .
२ .
वाणी को पूर्ण विराम देकर खुद को प्रतिभाव रहित बनाए रखने की कोशिश करें . न बात करे . न इशारा करे .
३ .
शरीर को कायोत्सर्ग में एकदम सुस्थिर बनाए रखे . शरीर के अंग और उपांग को किसी भी प्रकार के हलन चलन से मुक्त रखे .
ये तीनों संलीनता का पालन –
चोवीस घंटों के लिए भी कर सकते है ,
बारह घंटों के लिए भी कर सकते है ,
एक या आधे घंटे के लिए भी कर सकते है .
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