चेष्टाओं को छोड़ देना यह उत्सर्ग है .
मन की चेष्टा होती है . उसे छोड़ देना यह उत्सर्ग है .
वचन की चेष्टा होती है . उसे छोड़ देना यह उत्सर्ग है .
देह की चेष्टा होती है . उसे छोड़ देना यह उत्सर्ग है .
तीन बातें हैं .
१ .
धर्म क्रियाओं को करते समय मन में अन्य कोई भी विचार आने चाहिए नहीं . मन को केवल उसी धर्म क्रिया में एकाग्र रखना चाहिए .
२ .
धर्म क्रियाओं को करते समय ऐसी कोई भी बात नहीं करनी चाहिए जो धार्मिक न हो . वचन से अगर बोलना है तो वही बोले जो प्रस्तुत धर्म क्रिया से संबंधित हो . अन्यथा मौन रखे .
३ .
कायोत्सर्ग जैसी पवित्र क्रियाओं के समय देह को स्थिर एवं निश्चल बनाये रखे . मच्छर , मक्खी , चींटी आदि के द्वारा बाधा होनेपर भी शरीर को चलित न होने दे .
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स्वाध्याय –
१ . उत्सर्ग किसे कहते है ?
२ . प्रथम उत्सर्ग क्यां है ?
३ . द्वितीय उत्सर्ग क्यां है ?
४ . तृतीय उत्सर्ग क्यां है ?
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