कोरोना का डर मन में है लेकिन कोरोना से ज्यादा खतरनाक तो अफवाह होती जा रही है . अबतक ऐसी ऐसी अफवाहें आ चुकी है कि अब सच्ची बात को सच्ची बात मानने की हिम्मत नहीं हो रही है और जूठी बात को जूठी मानने की भी हिम्मत नहीं हो रही है . मिडिया पर कॉपी , पेस्ट , फॉरवर्ड और टाइपिंग के जरिये कैसी कैसी खबरें फैलाई जा रही है ?
परसो एक महात्मा का कालधर्म हुआ तो अफवाह फ़ैल गई कि वो कोरोना के कारण गयें . कुछ दिन पहले , विविध आचार्य भगवंतों के नाम से एक के बाद एक नकली पत्र निकलें और सामूहिक कटुताएं बढ गईं .
कल एक और अफवाह प्रचारित की गई कि आणंदजी कल्याणजी पेढी ने सरकार को १५ करोड की दानराशि अर्पित की एवं नाकोड़ा तीर्थ ने ११ करोड की दानराशि अर्पित की . यह २१वी शताब्दी की सबसे बड़ी अफवाह है . ऐसी कोई दानराशि सरकार को नहीं दी गई है . नाहीं ऐसा वचन भी दिया है .
आजतक चढ़ावे बड़े होते थें . अब अफवाओं के कद भी बड़े होने लगे हैं . एक के बाद एक अफवाह बनती रहती है और फैलती रहती है . ये कौन लोग हैं जो बातें बनाते हैं एवं आग लगाते हैं और खुद नपुंसक की तरह छिपे रहते हैं .
ऐसे लोगों को पता होना चाहिए कि जूठी बातें फैलाना , यह एक जघन्य अपराध होता है और उससे हीन कक्षा का पाप लगता है . जासूसी संस्थाओं को काम पर लगाकर ऐसे लोगों को पकडवाना चाहिए . अगर ये लोग पकड़े गए तो उन्हें बड़ी सजा हो सकती है .
समस्या कुछ और भी है . अफवाह बनानेवाले लोग तो काल्पनिक कहानी बनाकर गायब हो जाते हैं लेकिन जिस व्यक्ति या संस्था के विषय में कहानी बन गई वो तो हंमेशा के लिये चर्चा के घेरे में आ जाते हैं .
एक अपराधी वो है जो जूठी कहानी बनाते हैं . दूसरे अपराधी हम हैं जो ऐसी कहानीओं को फैलाते हैं . हम हंमेशा उत्तेजित रहते हैं कि कब कोइ न्यूज़ आये और कब मैं उसे फटाफट फॉरवर्ड करूं ? अभी एक जैन कन्या को कोरोना हुआ था तो हम सब ने पूरे भारत में उसका मैसेज फैला दिया . उस लड़की का रोग मिट गया है लेकिन वह पुराना मेसेज अभी भी भारत भ्रमण में घुम रहा है . उस लड़की पर , उसके माबाप पर क्यां बिती होगी , कभी किसीने सोचा ?
नहीं . हम सोचते ही नहीं हैं . हम तो बस चुगली करते हैं . इधर की बात उधर घुमाते हैं और उधर की बात इधर घुमाते हैं . जो लोग ज़िंदा हैं , उनके चल बसने के मॅसॅज भी घुमते हुए मिले हैं .
एक ने मेसेज बनाया और दस लोगों ने पढकर सौ लोगों में घुमाया . सौ लोगों ने हजारों लोगों में घुमा दिया . बस बात चल पडी . यही होता आया है . हम ही करते हैं ये सब .
रुकना पड़ेगा . अब बहोत हो गया . याद रखो कि पढनेे में या सुनने में जो खबर सच्ची लगती है वह जूठी भी हो सकती है .
बात फैलाने से पूर्व सोच लेना चाहिए कि मैं पत्रकार नहीं हूँ . हम खुद पर अंकुश रखें . समाचार पढ़ने के लिए साधन के पास आए वहां तक ठीक है . साधन को माध्यम बनाके खबरें फैलानी की कोइ जरूरत नहीं है . सब के पास अपनी अपनी व्यवस्थाएं हैं . किसी का कुछ रुकनेवाला नहीं है . सब को अपने काम की खबर मिल ही जाती हैं .
रिसर्च कहता है कि फेसबुक , ट्वीटर , वॉट्सप आदि माध्यम , आप के दो घंटे से चार घंटे तक का समय खा जाते हैं . इतना समय बर्बाद मत करो . कुछ किताबे पढ़ो . कुछ उपदेश सुनो . कुछ स्वाध्याय करो . मोबाईल से दूर रहो . वह न हो सके तो इंटरनेट से दूर रहो . वह भी न हो सके तो कमसेकम यह फॉरवर्ड वाला बिज़नेज़ करने से तो दूर ही रहो .
जिसे आप प्रत्यक्ष मिले हो उसी के विषय मेें आप बात कर सकते हैं . जिसे आप प्रत्यक्ष रूप से मिले नहीं है उसके विषय में आप बात न करे यहीं उचित होगा .
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