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कल का दिन याद रहेगा

 

कल का दिन याद रहेगा .
२२ मार्च थी . जनता कर्फ़्यू था . १४ घंटों की समयावधि थी . सूरज अपने समय पर ही उगा और अपने समय पर ही डूबा . दोनों के बिच में जो हुआ वह अभूतपूर्व था .

कल का दिन याद रहेगा .
इतनी शांति थी कि दूरदूर तक जो पंछी बोल रहे थें उनकी आवाज़ एकदम आमनेसामने हो ऐसे सुनाइ दे रही थी . रोड से गाड़ीआ नहीं गुजर रही थीं , ऐसा लग रहा था जैसे हिमालय की तलहटी में हम आ बैठे हैं . सब लोग अपनेअपने घर में कैद थें . मौत का खौफ , घरों के बाहर सन्नाटे बना रहा था . जिंदगी में ऐसा भी दिन आएगा यह सोचा न था . गजबनाक शांति थी .

कल का दिन याद रहेगा .
मैंने एक बड़ी किताब ली और डेढ़सौ पन्नों तक पढ़ी . थोड़ा लिखा भी . अचानक याद आ रहा था कि बहोत सारे सपने बनाके रक्खे है जो अब तक अधूरे हैं . कुछ सपने आलस्य की वजह से अधूरे हैं . कुछ सपने इसलिए अधूरे हैं क्योंकि फ़ोकस का अभाव है . समझो कि जिंदगी अधूरी रह गइ तो उन सपनों का क्यां होगा ? वो भी अधूरे ही छूट जाऐंगे ? थोडासा डर लगा . फिर संकल्प किया कि जो काम बाकी है उसपर जोर लगाओ , ज्यादा जोर लगाओ . जो काल करे सो आज कर .

कल का दिन याद रहेगा .
एक बड़ा विचार था जनता कर्फ्यू . हिंदुस्तान में ऐसा कर्फ्यू हम सब ने पहलीबार देखा . बड़ा विचार जब मन में आता है तब लगता है कि यह विचार कैसे पूरा होगा ? लेकिन विचार उपयोगी हो , विचार में सच्चाई हो और विचार की प्रस्तुति में दम हो तो बड़े से बड़ा विचार , क्रियान्वय तक पहुंच सकता है . अजब था कल का दिन . भारत का एक एक गाँव , एक एक शहर – रोड पर से गायब था और घर के भीतर मौजूद था .

कल का दिन याद रहेगा .
गृहिणीओं का काम बढ़ गया था . पर मातृ वात्सल्य बरकरार था . कोइ भी पेमेंट लिए बगैर , शत प्रतिशत काम करने में उन्हें आनंद आता है . इस निःस्वार्थ वृत्ति को देखकर मन भर आया . जब देश का पुरुष वर्ग आराम के मूड में था तब देश की माताए डबल ड्यूटी मूड में थीं . नौकर नौकरानी भी छुट्टी पर थें . कंइ पुरुषों ने घरकाम में सहयोग किया और अपना दायित्व निभाया . बिखरे हुए घर और रिश्तें , मानो संवरने लगे थें . सब अपना अपना घमंड छोडकर काम पर लग गयें थें .

कल का दिन याद रहेगा .
शाम को ५ बजे भारत देश ने थाली बजाई थीं . घर घर से आवाज़ें आ रही थीं . मंदिर के घंटनाद और थाली की गूँज एक साथ सुनाई दिए थें . कोरोना ने जो एक डर बना दिया है , वो डर जैसे कि गायब हो गया था . सब खुश दिख रहे थें , कोई भयभीत नहीं था . आपत्ति के समय जो जरूरी होता है वह हौसला करोडों चहेरों पर चमक रहा था . लड़ाई से भागना नहीं है . लड़ाई में हारना नहीं है . ईरादा साफ़ दिख रहा था .

कल का दिन याद रहेगा .
शाम को ५ बजे सभी डॉक्टर , नर्स , कम्पाउंडर , वॉश मॅन , पुलिस – खुश हो रहे थें . उन्हें मालूम था कि
थालीआ उन्हीं के लिये बज रही थी . डॉक्टर , नर्स , कम्पाउंडर , वॉश मॅन , पुलिस ने कर्फ़्यू नहीं पाला था , वो सब ऑन ड्युटी थें . वो सब , बिना डरे देश को संभाल रहें थें . उन्होंने नहीं कहां था कि हमारे लिए थाली बजाओ . स्व कार्य प्रतिबद्धता की सुगंध है उन लोगों में . न बहाने . न आलस्य . कल जब घरघर से थाली बजी तो वो रोमांचित भी हुएं और गद्गद भी हुएं .

कल का दिन याद रहेगा .
कल मुझे एकता , निर्भीकता , प्रतिबद्धता , एवं कृतज्ञता का साक्षात् अनुभव हुआ .

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