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अंतरिक्ष पार्श्वनाथ चालीसा

 

facebook_1560927615178( दोहरा ) 
चमत्कारी भगवान है अंतरिक्ष महाराज 
श्रद्धा से सुमिरन करो सफल होत सभी काज . १ 
भूमि को ना स्पर्श करे ऐसी मूर्ति महान 
अजबगजब सौंदर्य है सुखदाई है ध्यान . २ 
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( चौपाई )
अंतरिक्ष भगवान मनोहर पारसनाथजी महिमासागर 
रहते है धरती से ऊपर जग जयकारी शक्ति अगोचर . १ 
अतुल बली अरिहंत जिनेश्वर अगणित देव है सेवा तत्पर 
श्याम रंग की प्रतिमा सुंदर तीन लोक के जन दे आदर .  २ 
परम चमत्कारी है पारस धर्म धनुर्धारी  है पारस 
जो भी पास प्रभु को ध्यावे उसके सारे दुःख मिट जावे . ३ 
ग्यारह लाख और अस्सी हज़ार वर्ष पुरातन मूर्ति उदार .  
गोबर मिट्टी से बनी मूर्ति रतन समान है तेज की स्फूर्ति .  ४ 
खर दूषण विद्याधर हाथ मूरत रूप धर्यो जगनाथ 
कूँवे में प्रतिमा को थापी कणकण प्रभु की ऊर्जा व्यापी .  ५ 
स्पर्श प्रभु का जो जल पाए वो जल भी सब रोग मिटाए  
पद्मावती है संकटचूरण धरण इंद्र है कामित पूरण .  ६ 
एलचपुर का राजा श्रीपाल कुष्ठ रोग से था बेहाल 
उस कूंवे का पानी लगाया रोग गया और आरोग्य पाया . ७ 
नृप ने देव से प्रतिमा मांगी लेकिन देव था प्रभु का रागी 
बिंब देने वो न हुआ तैयार अब नृप करे उपवास स्वीकार .  ८ 
धरण इंद्र ने यह तप जाना प्रसन्न बन नृप आग्रह माना 
कच्चे धागे की डोली बनाई उस में मूर्ति को बैठाई .  ९ 
मूर्ति बाहर आई मनोहर देव कहे अब सुन राजेश्वर 
सात दिनों का बछड़ा मँगाओ उस से बैल गाड़ी बँधवाओ .  १० 
वाहन अपनेआप चलेगा अँधेरे में दीप जलेगा . 
पीछे मुड़कर देखना नाही आगे तुम बैठो धुरवाही .  ११ 
राजा वैसे ही करे प्रयाण मूर्ति में ज्यूं जागे प्राण 
सर सर सर गाड़ी चली आगे मूरत का कोइ वजन न लागे .  १२ 
वन कें वृक्ष वृक्ष करे वंदन धरती पवन में जागे स्पंदन .  
हिंगोली से एलचपुर जा रहे देव प्रभु की महिमा गा रहे .  १३ 
राजा के मन शंका आई मूर्ति मैंने गाड़ी में बैठाई . 
ताको कोई भार नहीं आवे बछडा़ आराम से कैसे जावे . १४ 
मूर्ति साथ में है या नहीं है राजा के मन चिंता यहीं है . 
व्याकुल भाव से पिछे विलोके तत् क्षण देव मूर्ति को रोके .  १५ 
प्रतिमा पिछे रूक कर रह गई खाली गाड़ी आगे बह गई
धरती से एकदम ही ऊपर हुए बिराजित पास जिनेश्वर .  १६ 
गगन प्रदेश में स्थिरता बनाई अंतरिक्ष नाम से ख्याति पाई 
चमत्कार जग को दिखलाया दशो दिशा में डंका बजाया .  १७ 
देव कहे तुम सुनो नरेश चैत्य रचो तुम इसी प्रदेश 
मूरत आगे नहीं आएगी मूर्ति प्रतिष्ठा यहीँ पाएगी .  १८ 
राजा मंदिर भव्य रचायो मन कर्तृत्व का घमंड आयो 
मूर्ति मंदिर में नहीं आवे घमंड नृप का खंडित थावे .  १९ 
जहां मूरत वहां विरच्यो मंदिर प्रभु अपनी ही जगह हुए स्थिर 
लाखों लोग दर्शने आवे  देव देवी प्रभु महिमा गावे . २० 
ग्यारह बयालीस संवत सुहावे प्रतिमा पुण्य प्रतिष्ठा पावे
महा सुदी पंचमी दिन गायो अंतरिक्ष प्रभु ध्वजा चडायो. २१ 
सकल जीव को सुख देते हैं मोक्ष मार्ग सन्मुख लेते हैं  . 
प्रभु आश्रय में जो भी आएं रिद्धि वृद्धि कल्याण वो पाएं .  २२ 
भारतवर्ष में महिमा व्यापे तीन लोक प्रभु गीत आलापे . 
रोग शोक संताप मिटाये  भूत प्रेत भय दूर भगाये .  २३ 
अंतरिक्ष यात्रा को आवो दर्शन से वांछित फल पावो . 
पूजन से महापुण्य कमावो ध्यान से सत् चिद् आनंद पावो . २४ 
भोगी की भोग भूख हरत है रोगी के रोग दूर करत है .  
योगी को महा सिद्ध बनावे अंतरिक्ष प्रभु अलख जगावे .  २५ 
कविवर भावविजय मुनिरायो कर्मोदय से दृष्टि गंवायो 
अंध मुनि बहु चिंता पायो गुरुवर ने तप मार्ग बतायो .  २६  
अट्ठम तप तब मुनि आराधे पार्श्वमंत्र मुनि भावे साधे . 
प्रगट हुई पद्मावती माता  बोली पारस देंगे शाता  .  २७  
पाटण से छरी पालित संघ निकल्यो तपजप प्रचंड रंग  
पहुंचे अंतरिक्ष दरबारे प्रभु साचो आश्रय संसारे .  २८  
भावविजय प्रभु सामने आये अंध नयन से आँसू बहाये  . 
प्रभु ने आँख में तेज पुरायो अंधअवस्था नाथ मिटायो .  २९ 
जयजय कार जगत में गाजे पारसनाथ की बधाई बाजे  . 
हरखे सुरवर मुनिवर बहु नर जीर्णोद्धार करावे मनोहर .  ३० 
सत्रहसो पंद्रह की साल चैत्र सुदी छठ मंगलमाल 
नूतन मंदिर पार्श्व बिराजे श्याम सुंदर प्रतिमा छाजे .  ३१ 
सूरज जैसा तेज है मुख पर चंद्र समान शीतलता सुंदर 
अधर ऊपर विलसे मृदु हास नयन में जागृत ज्योति निवास .  ३२ 
कमल पत्र सम रमणीय कान मेरुश्रृंग सम शिखा महान 
अष्टमी शशी सम चमके भाल करूणा रस मय कोमल गाल .  ३३ 
कंठ सदा अमृत रस धारी वक्ष विशाल हृदय अविकारी 
स्कंध समुन्नत महाबलवंत गंभीर नाभि ज्ञान अनंत .  ३४ 
कोमल कमर है सत्त्व निधान रमणीय है कटिबंध निशान .  
अर्ध पद्मासन मुद्रा महान कर पद अंगुली हरे मद मान.३५ 
पूनम रात में नभ ज्यूं चमके श्यामल मूर्ति तेज त्यूँ दमके . 
अंखिया देखत ही रह जाती आनंद की धारा बह जाती . ३६ 
प्रभु का रूप अनूप सोहावे वर्णन कोउं नहीं कर पावे . 
जो देखे सो डूब ही जावे तन मन धन जल अन्न भुलावे .  ३७ 
प्रभु कलिकाल में कल्प तरु सम प्रभु की शक्ति अदभुत अनुपम .  
था जब मुनिसुव्रत का शासन तब यह मूर्ति बनी मनभावन .  ३८
आज भी प्रभाव दिव्य ठहरायो लाखों लोग ने अनुभव पायो 
एकतान मन जाप करीजे ऋद्धिमंत ऐश्वर्य वरीजे . ३९ 
भारत देश महाराष्ट्र राज विदर्भ में शिरपुर शिरताज .  
अंतरिक्ष भगवान को वंदन अश्वसेन वामा के नंदन .  ४० 
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( दोहरा )
वाराणसी में च्यवन जन्म दीक्षा केवल ज्ञान 
समेत शिखर से मोक्ष गये देवर्धि दायक भगवान .
श्री अंतरिक्ष चालीसा जो पढे प्रातःकाल
उसको जीवन में मिले सुख सौभाग्य विशाल .

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