कोरोना को भारत में आए बहोत महीने हो चुके हैं . शुरू शुरू में जो तनाव था वो तीव्र था . आज तनाव है लेकिन वो तीव्रता नहीं है . मन संकट को स्वीकारने में समय लगा देता है लेकिन एक बार मन ने स्वीकार लिया कि हां , समस्या है और समस्या रहनेवाली है , तो फिर बात मन लड़ लेता है समस्या से .
समस्या से अधिक भारी होता है समस्या का डर . समस्या के बारे में कंई प्रश्न बनते हैं . समस्या क्यां है ? समस्या कहां से आई ? समस्या कब समझ में आई ? समस्या से होनेवाली तकलीफ़ क्यां है ? समस्या के उपर कैसे काम किया जाए ? समस्या को रोकना या मिटाना संभवित है ? समस्या कब तक रहेगी ? समस्या कितनी कम होगी ? समस्या से बचने के लिये मैं क्यां कर सकता हूं ? समस्या को कम करने में अन्य का सहयोग कैसे लिया जाए ? ऐसे अनेक प्रश्न हैं जो समस्या का हल लाने में अपनी तरफ से सहयोग दे सकते हैं .
केवल कोरोना की बात नहीं है . बात पूरे जीवन की है . मेरे अंदर कोई समस्या है यह समज़ने में आदमी को अधिक समय लग जाता है . आदमी मान लेता है कि समस्या आसपास के लोगों के कारण है . अतः आदमी यह भी मान लेता है कि समस्या मेरे कारण नहीं है . वस्तु स्थिति यह है कि सब के भीतर कुछ खराबी चल रही है . हमें अंदरूनी खराबी मिटाने का मन होता नहीं है और खराबी के कारण नुक़सान होना चालु रहता है .
जैसे कोरोना का माहौल है और अनलॉक वन , अनलॉक टु आदि के जरिए हम कार्यरत हो रहे हैं लेकिन हमें याद है कि कोविद १९ , अब तक गया नहीं है . हम सावधानी बरत रहे हैं . ठीक उसी तरह कुछ कमज़ोरिया हमारी भीतर है . कुछ कमज़ोरिया ज्ञात हैं , कुछ कमज़ोरिया अज्ञात हैं . हम भले ही व्यवहार में सब कार्य करें लेकिन हमें हमारी ज्ञात / अज्ञात कमज़ोरी को याद रखनी चाहिए . हम अन्यों की कमज़ोरी पर चर्चा करेंगे तो सभी की कमज़ोरी दिख सकती है . वो देखना हमारा लक्ष्य नहीं है क्योंकि अन्यों की कमज़ोरी देखने से फायदा कोई मिलता नहीं है . हम खुद की कमज़ोरी को खोजेंगे , याद रखेंगे , कम करेंगे . अनलॉक के प्रत्येक स्टेप की यही प्रेरणा रहेगी . जिसे याद है कि मैं सर्वगुणसंपन्न नहीं हूं वह जिंदगी में बहोत आगे निकल जाता है .
आषाढ़स्य प्रथमदिवसे : अनलोक की प्रेरणा
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