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सिद्धचक्र का माहात्म्य

१ . जब जब धर्मतीर्थ की स्थापना होती है तब तब गणधर भगवंतों के द्वारा द्वादशांगी की रचना होती है . इसी समय गणधर भगवंत के द्वारा सिद्धचक्र महायंत्र का पुनरूद्धार होता है . वर्तमान समय में जो सिद्धचक्र महायंत्र उपलब्ध है उस का पुनरुद्धार श्री गौतम स्वामीजी महाराजा ने किया था . इसी वजह से श्री गौतम स्वामीजी महाराजा को सिद्धचक्र महायंत्र के रचयिता माना जाता है . आप यह कह सकते हैं कि जो भी सिद्धचक्र महायंत्र के साथ जुड़ता है वह श्री गौतम स्वामी जी के साथ भी जुड़ता है .

२ . १४ पूर्व का महत्त्व अतिशय विशेष है . आज के समय में १४ पूर्व उपलब्ध नहीं है . लेकिन १४ पूर्व की छाया कहीं देखने मिले तो उसका महत्त्व बढ़ जाता है . १४ पूर्व में दशम पूर्व है विद्यानुवाद पूर्व . सिद्धचक्र महायंत्र के सभी मंत्रों की संयोजना विद्यानुवाद पूर्व के आधार से हुई है . आप यह कह सकते हैं कि जो भी सिद्धचक्र महायंत्र के साथ जुड़ता है वह विद्यानुवाद पूर्व अथवा १४ पूर्व के साथ जुड़ता है .

३ . श्रीपाल राजा को सिद्धचक्र की अधिष्ठायिका श्री चक्रेश्वरी देवी ने रत्नसानु पर्वत पर विशेष आवकार दिया था . जब धवल ने श्रीपाल को समंदर में गिरा दिया था तब चक्रेश्वरी देवी प्रगट हुई थी . साथ में माणिभद्र , पूर्णभद्र , कपिल , पिंगल ये चार वीर एवं कुमुद , अंजन , वामन , पुष्पदंत ये चार प्रतीहार प्रगट हुए थें . परीक्षा के समय में विमलेश्वर यक्ष ने श्रीपाल को एक हार दिया था जिससे पांच चमत्कार होते थें . सिद्धचक्र महापूजन में सभी के नाम मंत्र उल्लेखित हैं . जो देवी देवता श्रीपाल को सहायकारी बनें वो सिद्धचक्र के सभी आराधकों के लिए भी सहायकारी बनते हैं . हालांकि चमत्कार की लालच से कोई आराधना करना उचित नहीं है . आराधक निराकांक्ष होता है . चमत्कार स्वयंभू हो वही ठीक है .

४ . जिस तरह नवकार शाश्वत है , उसी तरह नवपद शाश्वत है . नवकार की आराधना जैसे महत्त्वपूर्ण है वैसे नवपद की आराधना महत्त्वपूर्ण है . मंदिर में नवपद के गट्टाजी होते हैं , सिद्धचक्र महायंत्र होता है उसकी पूजा करने का लाभ हमे मिलता है . यह पूजा अथवा पूजन कैसे की जाए , सिख लेना चाहिए . दोनों की पूजा प्रतिदिन करनी चाहिए . आसो पूनम , चैत्री पूनम के दिन सिद्धचक्र महापूजन करना चाहिए .

५ . जब भी सिद्धचक्र महापूजन होता है , आप जुड़िए . पूजन के अंत में यंत्र के पंच अभिषेक होते हैं : पंचामृत , दही , घृत , इक्षुरस और सुगंध अभिषेक . प्रत्येक अभिषेक में नव कलश के द्वारा धारा करने का विधान है . आप नव कलश के द्वारा पंच अभिषेक कीजिए , करवाइए . विधिकारक को पूजन शुरू होने से पूर्व सूचना दीजिए कि यह पंच अभिषेक हमे शांति से करने हैं . अक्सर देवी देवता के मंत्रों का विधान लंबा चलाया जाता है , और पंच अभिषेक के समय हड़बड़ी होती है . श्रीपाल के जीवन में जो भी चमत्कार हुआ है , पंच अभिषेक के कारण हुआ है . अत: सिद्धचक्र महापूजन में पंच अभिषेक का विधान सही तरीके से करे , करवाएं . दैनिक व्यवहार में नवपद का अभिषेक कभी न चुके , नवपद की चंदन + पुष्प पूजा कभी न चुके .

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