Press ESC to close

जैन स्वतंत्रता वीरों को भी आज के दिन याद करना है

भारत का आजादी पर्व १५ अगस्त को मनाया जाता है . इसी दिन हम भारत के सभी स्वतंत्रता वीरों का स्मरण करते हैं. जिसने जिसने भारत को विदेशी सत्ता से मुक्त करने के लिए पुरुषार्थ किया उन सभी को हम १५ अगस्त के दिन विशेष रूप से याद करते हैं . भारत का स्वतंत्रता संग्राम जब हुआ था तब भारत के प्रजाजन एकजुट होकर लड़े थे . कोई एक परंपरा , कोई एक धर्म , कोई एक संप्रदाय अलग से लड़ा था ऐसा नहीं था. सबने साथ मिलकर जंग छेड़ी थी तब जाकर देश आजाद हुआ था . 15 अगस्त के दिन जहां-जहां भाषण होते हैं वहां-वहां निर्धारित नाम को ही याद किया जाता है . शालाओं में जो किताबें पढ़ाई जाती है उसमें भी निर्धारित नाम ही पढ़ाए जाते हैं . आजादी के लिए लड़नेवालों के नाम तो बहुत है लेकिन सारे नाम किसी को याद हो ऐसा हुआ नहीं है . कुछ कुछ सभी को याद है और जो नाम याद है वो नाम सही में याद रखने लायक ही है .लेकिन जो नाम याद नहीं है वो भी याद करने लायक नाम है यह सत्य हम कैसे भूल सकते हैं ?

जैन होने के नाते हम अपने आप को अगर यह पूछे कि हमारे पूर्वजों ने स्वतंत्रता के संग्राम में क्या पुरुषार्थ किया था ? तो यह पूछना हमारा अधिकार है और इसका जवाब खोजना भी हमारा ही कर्तव्य है . जब भी कोई भी जैन स्वतंत्रता संग्राम के लिए लड़ा है तब वह भारतीयता की भूमिका से लड़ा है . ऐसा नहीं है कि मैं जैन हूं यह दिखावा करते हुए लड़ा है . वह लड़ा है तो केवल भारतवासी प्रजाजन बनकर लड़ा है . बाद में जब इतिहास लिखा गया और इतिहास में नाम दर्ज होते गए तब जाकर पता चला कि अधिकांश लोग ऐसे थे जो जैन नहीं थें लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में जरूर लड़े और कुछ लोग ऐसे भी थे जो जैन थें और स्वतंत्रता संग्राम में लड़े . स्वतंत्रता संग्राम में कुछ लोगों ने फांसी खाई है , कंई लोगों ने अंग्रेजों के पिस्तोल की गोली खाई है और अंग्रेज़ी सैनिकों के हाथों लाठी खाई है . फांसी खाने वाले , गोली खाने वाले और लाठी खाने वाले लोगों में कुछ नाम जैनियों के भी थे . वो नाम हमें याद होनी चाहिए . अनेक संदर्भों का आधार लेकर अहमदाबाद के भूषण भाई शाह ने एक सूची प्रकाशित की है , जिसमें आजादी के लिए शहीद हुए बीस जैनियों के नाम है .

१५ अगस्त के दिन हम , भारतीय होने के नाते उन १३५०० लोगों को भी याद करेंगे जो स्वतंत्रता संग्राम के लिए शहीद हो गए और जैन होने के नाते इन २० जैनियों को भी याद करे जो देश की आजादी के लिए शहीद हो गए . हालांकि यह आंकड़ा बदल सकता है . कुछ उल्लेख कहते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम में ७०,००० या सात लाख भारतीय शहीद हुए हैं . ऐसी स्थिति में जो जैन परिवार से जो शहीद हुए हैं ऐसे भारतीय की संख्या और बढ़ सकती है . एक उल्लेख अनुसार स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अनगिनत भारतीय जेल में गए थे उनमें ५००० से अधिक जैन भी जुड़े थे . हालांकि लाखों के सामने ५००० की संख्या छोटी दिखती है और हजारों के सामने २० की संख्या छोटी दिखती है लेकिन एक प्रचंड आश्वासन यह मिलता है कि जब देश आजादी के लिए लड़ रहा था तब हमारे पूर्वज भी हाथ से हाथ मिलाकर साथ में रहे थें .

स्वतंत्रता संग्राम में आर्थिक सहयोग की भूमिका में जैन बहुत ही आगे रहा था . मोतीशा सेठ , अमरचंद बांठिया , वीरचंद राघवजी की ऐसे अनेक अनेक नाम है जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय प्रजाजन को आर्थिक सहयोग देने में कोई कमी नहीं रखी थी . जैन समाज की यह विशेषता रही है कि आर्थिक सहयोग देने वालों ने अपने नाम गुप्त रखे थें अतः आर्थिक सहयोग देने वाले जैनियों की सूची उपलब्ध नहीं है. जिस दिन यह सूची बनेगी उस दिन उस सूची में जैनियों की संख्या बहुत बड़ी होगी इसमें कोई शक नहीं है . उदाहरण के तौर पर हम भामाशाह का नाम ले सकते हैं . महाराणा प्रताप जब मुगलों के सामने लड़ते लड़ते संकट में अवस्था में आ गए थे तब भामाशाह ने महाराणा प्रताप के २५००० सैनिकों का १२ साल तक सम्पूर्ण निर्वाह किया था . १८५७ के विप्लव के समय विप्लवकारी हजारों योद्धाओ को ग्वालियर के अमरचंदजी बांठिया के द्वारा आर्थिक सहयोग मिलता रहा था . मुंबई के शाह सौदागर शेठ मोतीशाह के उपर अंग्रेजों ने आक्षेप लगाया था कि वह अंग्रेजी सरकार के विरोध में जो लोग आंदोलन कर रहे हैं उन्हें जहाज आदि का बड़ा सहयोग दे रहे हैं . वीरचंद राघवजी जब धर्म प्रचार हेतु जब विदेश गए थें तब उन्होंने विदेश से भारत वासियों के लिए अनेक सहाय भेजी थी . ऐसे कंई नाम हम ले सकते हैं .

विशेषत: एक नाम याद करे तो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लाल बाल और बाल की जो त्रिपुटी थी उसमें लाल का अर्थ है लाला लाजपत राय . लाला लाजपत राय जैन परिवार से थें . लाला लाजपत राय की दादी को प्रतिदिन जैन मुनि भगवंत को गोचरी वेराने का नियम था.

सन् १९२८ में साइमन कमीशन के आंदोलन में लालाजी पर भारी लाठीचार्ज हुआ था जिसके कारण उसी वर्ष १७ नवेम्बर के दिन आप का आयुष्य समाप्त हो गया था . लालाजी की विदाई के कारण ही भगतसिंह , शिवराम राजगुरु , सुखदेव थापर , चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारीओं ने क्रांति की आवाज को बुलंद बना दिया था . जैन परिवार के सपूत लालाजी को पंजाब केसरी अर्थात् पंजाब का शेर कहा जाता था .

राजा अकबर के पूर्व दिल्ली के सिंहासन के ऊपर विक्रमादित्य हेमु बिराजित थे . हेमू के राज्य में गौ हत्या पर प्रतिबंध था , गौ हत्या करने वाले को कड़ी सजा दी जाती थी . लेखक जयभिक्खु ने विक्रमादित्य हेमू के ऊपर एक सुंदर किताब लिखी है इसे पढ़ने से समझ में आता है कि विक्रमादित्य हेमु जैन थें . सन् १५०१ में जन्म , सन् १५५६ में पाणीपत में देहांत .

अभी २०२५ का वर्ष चल रहा है . सन् १५२५ में दक्षिण भारत के उल्लाल शहर में रानी अब्बक्का चौटा हुई थी . इतिहास में रानी अब्बक्का चौटा का नाम First female freedom fighter of India के रूप में सुवर्ण अक्षरों से अंकित है . आप ने ४० वर्ष तक पुर्तगाल सेना के खिलाफ जल युद्ध एवं भूमि युद्ध करके देश की आजादी में बहुत बड़ा योगदान दिया था . आखिरकार इसी लड़ाई के दौरान सन् १५७० में वो शहीद हो गई थी . महारानी अब्बक्का छोटा जैन माबाप की बेटी थी .

ऐसे अनेकों नाम है . हम जैन हैं . हमारे पूर्वजों ने भारत की आजादी में जो भी योगदान दिया है उसे हमें याद रखना चाहिए . हम भारतीय है . हमारे पूर्वजों ने भारत की आजादी में जो भी योगदान दिया है उसे हमें याद रखना चाहिए .

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *