बीस स्थानक की आराधना से तीर्थंकर नाम कर्म नामक पुण्य का उपार्जन होता है . बीस स्थानक की आराधना में एक पद है दान पद . बीस स्थानक महापूजन की पुरानी पोथी हम देखते हैं तो पंद्रहवा पद , दान पद है ऐसा उल्लेख मिलता है . लेकिन आजकल , पंद्रहवा पद गौतम पद हो गया है . ऐसा क्यूं हुआ ? समझ लेना चाहिए .
श्री बीस स्थानक की पूजा के श्लोक में कहा गया है कि तीर्थंकर , गणधर , आचार्य , तपस्वी आदि को अशन , पान , खादिम , स्वादिम आदि सामग्रियां अर्पित करने से आत्मा तीर्थंकर नामकर्म उपार्जित करता है . श्री बीस स्थानक महापूजन के श्लोक में यही बात अलग तरीके से कही गयी है . पूजा और पूजन , दोनों में दान पद का श्लोक है .
अब दान दाताओं की बात करें .
प्रत्येक तीर्थंकर भगवंत वर्षीदान देते हैं .
श्रेयांस कुमार ने श्री आदिनाथ प्रभु को इक्षु रस दान किया .
शालिभद्रजी ने पूर्व भव में मुनि भगवंत को खीर का दान किया .
प्रभु वीर ने अर्ध देवदूष्य का दान किया .
ऐसे दानदाताओं की सूची लंबी बनती है .
इस सूची में गुरु गौतम का नाम अवश्य आता है .
गौतम गुरु ने द्वादशांगी की रचना की और यह द्वादशांगी प्रभु वीर को अर्पित की .
गौतम गुरु ने १५०० तापसों को खीर दी .
यहां तक ठीक है .
गौतम गुरु ने ५०००० आत्माओं को केवल ज्ञान दिया .
यह दान आश्चर्य कारी था . खुद गौतम गुरु केवलज्ञानी नहीं थें . लेकिन उनके कारण एकाधिक आत्माओं को समय समय पर केवलज्ञान होता ही रहा . इसके चलते गौतम गुरु को सबसे बड़ा दातार माना गया .
हम ५०००० आत्माओं को नवकार मंत्र का ज्ञान भी नहीं दे पाए हैं .
हम ५०००० आत्माओं को रात्रिभोजन का त्याग भी नहीं करा पाए हैं .
हम ५०००० आत्माओं को पंच प्रतिक्रमण नहीं सिखा पाए हैं .
हम ५०००० आत्माओं को चौदह नियम के लिए प्रेरित नहीं कर पाए हैं .
हम ५०००० आत्माओं को बारह व्रत नहीं दे पाएं हैं .
हम ५०००० आत्माओं को पंच महाव्रत स्वरूप दीक्षा नहीं दे पाए हैं .
हम बहोत छोटे आदमी हैं .
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हम एक आत्मा को भी केवल ज्ञान तक पहुंचा दे तो हमारा जीवन धन्य हो जाए लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाएंगे . कमज़ोर हैं हम .
और गौतम गुरु को देखो . ५०००० आत्माओं को केवलज्ञान दे दिया . इसी केवलज्ञान दान के कारण , बीस स्थानक का दान पद , गौतम पद बन गया है .
गौतम पद का मंत्र है : ॐ ह्रीं नमो गोयमस्स . यह मंत्र बड़ा प्रभावशाली है .
वर्धा श्री संघ में श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्राचीन मूर्ति एवं गौतम गुरु की नवीन मूर्ति की प्रतिष्ठा का प्रसंग आया था . मैंने गौतम गुरु की नवीन मूर्ति के समक्ष इस मंत्र का अंदाजन नव लाख जाप करवाया , सामूहिक जाप . बाद में प्रतिष्ठा के चडावे हुएं . सामान्यतः पार्श्वनाथ प्रभु के चढावे सबसे बडे होते हैं . लेकिन वहां गौतम गुरु के चढावे सबसे बडे हुएं .
आप प्रतिदिन इस मंत्र का जाप अवश्य करें .
यह बीस स्थानक मंत्र भी हैं और गौतम मंत्र भी है .
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