हम धर्म थोड़ा ही कर सकते हैं , जितनी हमारी शक्ति होती है उतना ही . लेकिन हम धर्म की अनुमोदना अधिक से अधिक कर सकते हैं , इस में हमारी शक्ति की मर्यादा बीच में नहीं आती है . देखने वाली बात यह है कि थोड़ा सा धर्म किया तो फल भी थोड़ा सा ही मिलता है . लेकिन अनुमोदना भरपूर करी तो अनुमोदना का फल भी भरपूर मिलता है . हम अनुमोदना करने में कंजूसी नहीं रख सकते हैं . आप नवपद के दिनों में आंबेल करते हो तब आप के खुद के आंबेल की संख्या एक होगी या नव होगी . लेकिन जब आप नवपद के दिनों में आंबेल करने वाले सभी तपस्वीओं की अनुमोदना करते हें तब आंबेल की संख्या बढ़ जाती है , बड़ी हो जाती है . नव दिनों के दौरान किसी एक संघ में ९०० अथवा १००० आंबेल हो जाते हैं , किसी एक शहर में ३००० से ९००० आंबेल हो जाते हैं , महाराष्ट्र जैसे किसी एक राज्य में १०.००० से १.००.००० आंबेल भी हो जाते हैं . नवपद के नव दिनों में पूरे भारत में कुल मिलाकर कितने आंबेल हो जाते होंगे इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है . अब तो कंई विदेशों में भी आंबेल होते हैं . अमेरिका , ओस्ट्रेलिया , जापान जैसे देशों में एवं होंगकोंग , दुबई जैसे शहरों में भी नवों दिन आंबेल होने की खबरें मिलती हैं . नव दिनों में देश – विदेश में कितने आंबेल हुएं होंगे , संख्या लाखों तक जा सकती है . बात ढाई द्वीप की करें तो , भरत ऐरवत महाविदेह में नव दिनों में दौरान कितने आंबेल हुएं होंगे , संख्या करोड़ों तक भी जा सकती है . हमें देश-विदेश के एवं ढाई द्वीप के सभी तपस्वीओं की अनुमोदना करनी चाहिए . इस अपरिसीम अनुमोदना से जो आध्यात्मिक लाभ होगा वह भी अपरिसीम ही होगा .
श्रीपाल राजा के जीव ने श्रीकांत राजा के भव में नवपद आराधना की थी , साथ में रानी श्रीमती भी थी . उस समय रानी की आठ सखीओं ने राजा रानी की अनुमोदना की थी . वो आठ सखियां दूसरे भव में अलग-अलग राजाओं की रानी बनी थीं . प्रथम सखी बब्बरकोट शहर के राजा महाकाल की बेटी बनी थी . नाम मदनसेना . द्वितीय सखी रत्नसंचया नगरी के राजा कनककेतु की बेटी बनी थी . नाम मदनमंजूषा . तृतीय सखी थाणा शहर के राजा वसुपाल की बेटी बनी थी . नाम मदनमंजरी . चतुर्थ सखी कुंडल शहर के राजा मगरकेतु की बेटी बनी थी . नाम गुणसुंदरी . पंचम सखी कंचनपुर शहर के राजा वज्रसेन की बेटी बनी थी . नाम त्रैलोक्यसुंदरी . षष्ठ सखी देवलपट्टन शहर के राजा धरापाल की बेटी बनी थी . नाम शृंगार सुंदरी . सप्तम सखी कुल्लाग शहर के राजा पुरंदर की बेटी बनी थी . नाम जयसुंदरी . अष्टम सखी सोपारक शहर के राजा महासेन की बेटी बनी थी . नाम तिलकसुंदरी . दो बात दिखती है : एक , सभी सखीओं को राजकुमारी का अवतार मिला . दो , सभी सखीओं का संबंध दोबारा श्रीपाल एवं मयणा से साथ जुड़ता है . अनुमोदना से पुण्य बना . अनुमोदना से ऋणानुबंध बना . जहां तक श्रीकांत राजा के पूर्व भव की रानी श्रीमती की बात है तो वह नवपद की आराधना की प्रेरणादायिनी है अतः वह श्रीपाल राजा की सर्वप्रथम रानी मयणा सुंदरी बनती है . मयणा सुंदरी के पिता हैं उज्जैनी के सम्राट् प्रजापाल राजा .
श्रीपाल राजा का विवाह अलग-अलग नव शहरों के राजा की पुत्रीओं से होता है . कारण ? नवपद की आराधना . धवल शेठ की विपदा श्रीपाल राजा के कारण दूर हो जाती है . कारण ? नवपद की आराधना . नव राजाओं को प्रभावित करने में श्रीपाल राजा सफल बनते हैं . कारण ? नवपद की आराधना . नियम याद रखना : नवपद आराधना से सर्वोत्कृष्ट पुण्य निर्माण होता है , नवपद आराधना की अनुमोदना से भी विशिष्ट पुण्य उपार्जन होता है .
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