आप की अनुमोदना से आप का भविष्य निर्धारित होता है . आप उत्तम तत्त्व की अनुमोदना करेंगे , आपका भविष्य उत्तम बनेगा . आप उत्तम तत्त्व की अनुमोदना नहीं करेंगे , आपका भविष्य उत्तम नहीं बनेगा . आप अधम तत्त्व की अनुमोदना करेंगे , आपका भविष्य अधम बनेगा . आप अधम तत्त्व की अनुमोदना नहीं करेंगे , आपका भविष्य अधम नहीं बनेगा . हम किसी शादी में जाएंगे और शादी में जो हो रहा है उसकी तारीफ करते रहेंगे उससे जो अनुमोदना बनेगी वह पवित्र अनुमोदना नहीं होगी . आप किसी धार्मिक महोत्सव में जाएंगे और वहां जो हो रहा है उसकी तारीफ करते रहेंगे उससे जो अनुमोदना बनेगी वह पवित्र अनुमोदना होगी . आप किसी का बंगला या बड़ा घर देखकर वहां तारीफ करने बैठ जाएंगे तब जो अनुमोदना होगी वह पवित्र अनुमोदना नहीं होगी . आप किसी मंदिर या तीर्थ या धर्मशाला – भोजनशाला को देखकर वहां जो भक्ति हो रही है उसकी तारीफ करने लगेंगे तब जो अनुमोदना होगी वह पवित्र अनुमोदना होगी . आप किसी के कपड़े या गहने देखकर उसकी तारीफ करने लगेंगे तब जो अनुमोदना होगी वह पवित्र नहीं होगी . आप प्रभु की अंगरचना या सुंदर गहुंलिया देखकर उसे बनाने वाले की अनुमोदना करने लगेंगे तब जो अनुमोदना होगी वह पवित्र होगी . आप जब भी किसी की तारीफ करें तब स्वयं को पूछ ले : क्या मैं पाप की अनुमोदना कर रहा हूं या पुण्य की अनुमोदना कर रहा हूं ? साधक पाप प्रवृत्ति से डरता है एवं पाप प्रवृत्ति की अनुमोदना से भी डरता है . साधक पुण्य प्रवृत्ति से आकर्षित होता है एवं पुण्य प्रवृत्ति की अनुमोदना करने में उत्साहित रहता है . श्रीपाल राजा ने श्रीकांत राजा के भव में पाप भी किया और पुण्य भी किया . श्रीकांत राजा के ७०० सागरीतों ने पाप की भी अनुमोदना की थी एवं पुण्य की भी अनुमोदना की थी . आप जिसकी अनुमोदना करते हैं वह अगले जन्म में आपको वापस मिलता है . इसे ही ऋणानुबंध कहते हैं .
श्रीकांत राजा का एक ऋणानुबंध श्रीमती रानी के साथ था . अतः श्रीकांत राजा जब श्रीपाल राजा बने तब श्रीमती रानी मयणा सुंदरी बनकर उन्हें वापस मिली . श्रीकांत राजा का एक ऋणानुबंध ७०० सागरीतों के साथ था अतः श्रीकांत राजा जब श्रीपाल राजा बने तब ७०० सागरीत , ७०० कोढिया बनकर उन्हें वापस मिलें . श्रीकांत राजा का एक ऋणानुबंध सिद्धचक्र की आराधना के साथ भी था अतः जब श्रीकांत राजा श्रीपाल राजा बने तब संयोग ऐसे बनते गयें कि श्रीपाल राजा को दोबारा सिद्धचक्र की आराधना का अवसर मिले . संयोग का आरंभ श्रीपाल राजा के घर से ही हुआ . चंपापुरी नगरी श्रीपाल राजा की जन्मभूमि . पिता सिंहरथ राजा . माता कमलप्रभा रानी . पूर्व भव के पापों का उदय ऐसा हुआ कि श्रीपाल के बचपन में ही पिताजी की मृत्यु हो गई . अब देखिए , श्रीकांत राजा का एक ऋणानुबंध सिंह राजा के साथ भी था . अतः श्रीकांत राजा जब श्रीपाल राजा बने तब सिंह राजा , अजितसेन बनकर उन्हें वापस मिलें . पूर्व भव में सिंह राजा ने श्रीकांत राजा की वजह से अपना राज्य गंवा दिया था . उस पाप के कारण , श्रीपाल राजा के भव में चाचा अजितसेन ने ऐसा खौफ बना दिया कि श्रीपाल अपने पिता के राज्य सिंहासन पर बैठ नहीं पाएं . बल्कि बाल्यावस्था के श्रीपाल को लेकर माता कमलप्रभा रानी को जंगल में भागना पड़ा . रानी और श्रीपाल के साथ कोई परिवारजन या दासदासी नहीं थें . वो दोनों बिलकुल अकेले हो गयें थें . हत्यारों से बचाने के लिए माता ने छोटे से श्रीपाल को कुष्ठरोगियों के हाथ में सौंप दिया था . और स्वयं मायके चली गई थी .
हम एक जन्म से दूसरे जन्म में जाते हैं तब पांच तत्त्व साथ में आते हैं : पुण्य , पाप , राग , द्वेष एवं अनुमोदना . श्रीपाल राजा पूर्व भव से कुछ पुण्य साथ में लेकर आए थें अतः उन्हें राज परिवार में जन्म मिला . श्रीपाल राजा पूर्व भव से अत्यधिक पाप भी साथ में लेकर आए थें अतः उन्हें राज परिवार से भागना पड़ा , कुष्ठ रोग हुआ एवं कुष्ठ रोगियों के साथ लंबे समय तक रहना पड़ा . श्रीपाल राजा पूर्व भव से राग के संस्कार साथ में लेकर आए थें अतः उन्हें सातसो कुष्ठ रोगियों के साथ रहने में अड़चन या अप्रीति नहीं हुई . सब पूर्व भव के सागरीत ही थें . सिंह राजा पूर्व भव से द्वेष के संस्कार साथ में लेकर आएं थें अतः अजितसेन चाचा के रूप में उन्होंने श्रीपाल के लिए भारी वैमनस्य बना लिया था .
अब बात करें अनुमोदना की . श्रीकांत राजा ने श्रीमती रानी के उत्तम शब्दों की एवं उत्तम आचरण की अनुमोदना की थी अतः आगामी भव में श्रीपाल राजा का मयणा सुंदरी के साथ वापस संयोग हुआ . श्रीकांत राजा के ७०० सागरीतों ने श्रीकांत राजा के सिद्धचक्र आराधन की अनुमोदना की थी अतः ७०० सागरीत , आगामी भव में वापस से श्रीपालराजा को मिलें .
सीखना यह है कि आप जब भी किसी की अनुमोदना करें तब अनुमोदना में विवेक शीलता रखें . अनुमोदना पाप की करेंगे , आगामी भव में पाप का वातावरण लेकर पापकारी लोग वापस मिल जायेंगे . अनुमोदना पुण्य की करेंगे , आगामी भव में पुण्य का वातावरण लेकर पुण्यकारी लोग वापस मिल जायेंगे .
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