आज मेरे प्रभु की आंगी नहीं बनी है . फिर भी मेरे प्रभु देदीप्यमान है .
प्रभु को आंगी चढाते समय , प्रभु जीवित थें तब गृहस्थ अवस्था में कैसे लगते होंगे उसकी कल्पना करनी चाहिए ऐसी विधि है . प्रभु का राज्य वैभव कैसा था , प्रभु का ऐश्वर्य कैसा था इस की कल्पना आए इस तरह की मूल्यवान् आंगी बनानी चाहिए . आंगी चढाने के बाद प्रभुमूर्ति का दबदबा बढ जाता है यह देखकर कल्पना करनी चाहिए कि प्रभु के पास असीम ऐश्वर्य था और सब का प्रभु ने त्याग कर दिया . प्रभु का त्याग कितना महान् था इस विषय की कल्पना करने में आंगी के दर्शन सहाय कारी होते हैं .
पर्युषण के आठों दिन भव्य आंगीआ सजीं . आज भादो सुद पंचमी के दिन आंगी से विरहित प्रभु के दर्शन हुएं . ऐसा लगा कि प्रभु की श्रमण अवस्था एवं वीतराग अवस्था के दर्शन हो गएं . मुझे प्रभु की ऐश्वर्य अवस्था भी प्रिय लगती है . मुझे प्रभु की श्रमण अवस्था भी प्रिय लगती है . मुझे प्रभु की वीतराग अवस्था भी प्रिय लगती है .
मैं इतना कमझोर नहीं हूं कि आंगी विरहित प्रभु को देखकर भावानुभूति कर न सकूं . संगेमरमर की सुंदर मूर्ति प्रभु के साक्षात्कार का अहेसास दिलाती है . मैं इतना जड भी नहीं हूं कि आंगी से समृद्ध प्रभु को देखकर , प्रभु की राजराजेश्वर अवस्था की कल्पना कर न सकूं . मुझे भगवान् के दोनों रूप प्रिय लगते हैं . ऐश्वर्यपूर्ण रूप भी . ऐश्वर्यत्यागी रूप भी .
कोई जब आंगी का विरोध करें तो मुझे बूरा लगता है : प्रभु की पिंडस्थ अवस्था के अर्थात् गृहस्थ अवस्था के दर्शन भी करने चाहिए . राग के वातावरण में विराग बनाए रखने की प्रेरणा देती है भव्य अंगरचना . प्रभु के ऐश्वर्यमय सौंदर्य को देखकर शुभ भावों का विकास होता ही है जिससे कर्मनिर्जरा होती है एवं पुण्यबंध होता है .
कोई जब तुच्छ सामग्री से अंगरचना करें तब बहोत बूरा लगता है . क्यां भगवान् सो-देढसो या चारसो-पांचसो रूपै के वस्त्र पहनते थें ? क्यां भगवान् नकली सोना-चांदी के आभूषण धारण करते थें ? क्यां हम प्लास्टिक के टिके वाले ड्रेस पहनकर शादी में जाते हैं कभी ? जवाब है ना . तो फिर भगवान् की अंगरचनाएं सस्ती सामग्री से क्यों हो रही है ? भगवान् की अंगरचना उत्तम सामग्री से हो ऐसी विधि है . शायद , हमने अंगरचना को डेकोरेशन समझ लिया है अतः हम सस्ती चीझों का उपयोग धडल्ले से कर रहे हैं .
अंगरचना में क्यां नहीं वापरना चाहिए इस विषय में अभी कुछ समय पूर्व जैनशासन के सभी आचार्य भगवंतों ने एक मार्गदर्शन दिया है . ध्यान से पढिए :
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રૂ , વેલ્વેટ , ખાદ્ય પદાર્થ , પ્લાસ્ટિકના ટીકા , નકલી જરી , નકલી બાદલો અને અન્ય સસ્તા સામાનથી આંગી કરવી નહીં .
अर्थ : कोटन , वेल्वेट , खाद्यपदार्थ , प्लास्टिक के टीके , नकली जरी , नकली बादला एवं अन्य सस्ते सामान से अंगरचना नहीं करनी चाहिए .
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यह मार्गदर्शन अलग अलग समुदाय के सभी गच्छाधिपति भगवंतों ने दिया है . आज तक जो हुआ वह जाने दो . आगे से ध्यान रखना है कि सस्ते सामान से अंगरचना न हो .
एक और बात भी है . आंगी के द्वारा प्रभु की गृहस्थ अवस्था = राजेश्वर अवस्था का स्मरण करना है . अतः आंगी की रचना में केवल राजवी अवस्था दिखानी चाहिए . आंगी के द्वारा प्रभु की श्रमण अवस्था का स्मरण करना है . अतः आंगी की रचना में केवल श्रमण अवस्था भी दिखा सकते है . अन्य भी कुछ उचित रचना हो सकती है .
लेकिन भगवान् की मूर्ति पर आधुनिक वेषभूषा , तिरंगा , देवीत्व , पशु – पंखी का डेकोरेशन चढाना और उसे आंगी का नाम देना यह सरासर अनुचित है . खेद की बात है कि इस साल किसी संघ में सूटपेन्टटाई से भगवान् को सजाया गया , किसी संघ में भगवान् को देवी मां के रूप में सजाया गया , किसी संघ में भगवान् को बटर फ्लाय के रूप में सजाया गया . अन्य भी अनुचित रचनाएं हुईं . ये सब बंद होना चाहिए .
किस किस तरीके से समुचित आंगी हो सकती है इस विषय का मार्गदर्शन अनुभवी साधुसाध्वी भगवंतों से मिल सकता है . मार्गदर्शन लेना चाहिए . ये मार्गदर्शन कोई लेख पढने से नहीं मिलेगा . ये मार्गदर्शन प्रत्यक्ष वार्तालाप से ही मिलेगा .
आज भादो सुदी पांचम के दिन भगवान् के दर्शन करते हुएं जो भाव जागृत हुएं वो कोई अपूर्व थें . जीवन में कल्पना का भी महत्त्व है . अंगरचना सहित मूर्ति हमें प्रभु की राज्य अवस्था की कल्पना से जोडती है . जीवन में सत्य का भी महत्त्व है . अंगरचना रहित मूर्ति हमें प्रभु की वर्तमान वीतराग अवस्था का अहेसास दिलाती है . मुझे प्रभु के सभी रूप प्रिय लगते हैं . एकमात्र प्रभु ही ऐसे हैं जिन में डूबकर मुझे शक्ति मिलती है , शांति मिलती है , शुद्धि मिलती है .
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