हम जिस से धर्म का ज्ञान लेते हैं
उसे याद रखना यह हमारी फर्ज है .
धर्म ज्ञान के दाताओं को
प्रशंसा आदि के द्वारा सम्मानित करना चाहिए .
धर्म ज्ञान के दाताओं को
निंदा आदि के द्वारा अपमानित नहीं करना चाहिए .
धर्म ज्ञान के दाताओं को
मन से एवं वचन से याद करना , उसे अनिह्नव कहते है .
अनिह्नव आचार के विषय में तीन बातें समझ लेनी चाहिए .
१.
आप को जिस के वचन से –
धर्म प्रवृत्ति एवं धर्म क्रिया करने की प्रेरणा मिली ,
धर्म प्रवृत्ति एवं धर्म क्रिया करने का उत्साह मिला ,
धर्म प्रवृत्ति एवं धर्म क्रिया करने का मार्गदर्शन मिला
उसे आप जीवनभर के लिये आदरपूर्वक याद रखिए .
वह साधु भी हो सकता है . वह साध्वी भी हो सकती है .
वह श्रावक भी हो सकता है . वह श्राविका भी हो सकती है .
२.
आप को जो जो सूत्र , स्तवन या पद कंठस्थ है
उसके रचनाकार का नाम एवं इतिहास
आप को मालूम होना चाहिये .
सूत्र , स्तवन या पद के रचनाकारों को
अधिक से अधिक भाव वंदना करनी चाहिये .
३.
अपने ज्ञान का , अपनी प्रतिभा का
अहंकार नहीं रखना चाहिए.
किसी भी सफलता का यश ,
अकेले अपने नाम पर नहीं लेना चाहिए .
उपकारीओं के एक एक उपकार को एवं
सहयोगिओं के एक एक सहयोग को भूलना नहीं चाहिए .
आप को जब जब बहुमान मिले तब तब
उपकारी एवं सहयोगियों का नाम बोलना चाहिये .
स्वाध्याय –
१ . अनिह्नव आचार किसे कहते हैं ?
२ . अनिह्नव के विषय में प्रथम बात क्यां है ?
३ . अनिह्नव के विषय में द्वितीय बात क्यां है ?
४ . अनिह्नव के विषय में तृतीय बात क्यां है ?
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