( जैन धर्म में पांच आचार का पालन अनिवार्य है .
प्रथम आचार है ज्ञान आचार . ज्ञान आचार के आठ नियम हैं .
द्वितीय आचार है दर्शन आचार . दर्शन आचार कें आठ नियम हैं .
तृतीय आचार है चारित्र आचार . चारित्र आचार के आठ नियम हैं .
चतुर्थ आचार है तप आचार . तप आचार कें बारह नियम हैं .
पंचम आचार है वीर्य आचार . वीर्य आचार कें तीन नियम हैं .
( ८ + ८ + ८ + १२ + ३ = ३९ नियमों को समज लेना जरूरी है . )
आप धर्म श्रवण करते हैं वह ज्ञान आचार है .
आप धर्म कथा सुनते हैं वह ज्ञान आचार है .
आप धर्म के ग्रंथ अथवा पुस्तक पढते हैं वह ज्ञान आचार है .
आप धर्म के सूत्र अथवा आचार सिखते हैं वह ज्ञान आचार है .
आप किसी भी प्रकार से स्वाध्याय करते हैं वह ज्ञान आचार है .
ज्ञान आचार कें आठ नियम हैं . प्रथम नियम है काल .
काल के विषय में तीन बातें याद रखनी चाहिए .
१ .
किसी भी कार्य को सही तरीके से करना हो तो उस काम के लिये समय निकालना पडता है . मेरे पास समय नहीं है ऐसा बोलने से और सोचने से , काम विफल हो जाता है . कार्य के विषय में, केवल सोचने से कार्य नहीं होता है . कार्य के लिये समय निकालने से ही कार्य संपन्न होता है . जैन धर्म का अभ्यास करने के लिये प्रतिदिन समय निकालना चाहिए . आप समय निकालेंगे तभी ज्ञान उपार्जन होगा . ज्ञान उपार्जन के लिये प्रतिदिन कुछ समय निकालना है ऐसा संकल्प रखो . संकल्प को साकार करने का पुरुषार्थ करो .
२ .
आप के पास जितना भी समय है उसे घडी के क्रम में निश्चित रखिए . सुबह , ९.०० बजे हो , १०.३० बजे हो , दोपहर ३ .०० बजे हो , संध्या को ७.३० बजे हो , आप को जो समय ठीक लगे वह समय निश्चित कर लो . आधा घंटा हो या एक घंटा हो , समय पक्का कर लो . प्रतिदिन उसी समय पर ज्ञान अभ्यास करने का लक्ष्य रखिए . समय नियत रखने से अभ्यास नियमित हो जाता है .
३ .
चार समय ऐसे हैं जब सूत्र का अभ्यास नहीं किया जाता है .
+ सूर्योदय के पूर्व की ४८ मिनट .
+ सूर्यास्त के बाद की ४८ मिनट .
+ मध्याह्न की ४८ मिनट . अंदाजन दोपहर १२.०० से १.०० .
+ मध्यरात्रि की ४८ मिनट . अंदाजन रात्रि १२.०० से १.०० .
सूत्र का अभ्यास एवं पुनरावर्तन के लिये यह समय वर्जित है .
लेकिन इस समय में स्तवना , स्तोत्र , स्तुति आदि सिख सकते हैं , धर्मोपदेश की किताब पढ सकते हैं .
स्वाध्याय –
१ . ज्ञान आचार किसे कहते हैं ?
२ . काल के विषय में प्रथम बात क्या है ?
३ . काल के विषय में द्वितीय बात क्या है ?
४ . काल के विषय में तृतीय बात क्या है ?
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By पू.गुरुदेव श्री प्रशमरतिविजयजी म .
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