आदर देने से विनय होता है .
सत्कार करने से विनय होता है .
नमस्कार करने से विनय होता है .
अहोभाव दिखाने से विनय होता है .
अर्चन – पूजन करने से विनय होता है .
ज्ञान का विनय करने से सद् बुद्धि का विकास होता है .
ज्ञान का विनय तीन प्रकार से होता है .
१ .
जैसै हम मूर्ति को हाथ जोडकर आदर देते हैं
वैसै ग्रंथ एवं पुस्तक को हाथ जोडकर आदर देना चाहिए .
जैसै हम मूर्ति को तीन खमासमण देते हैं
वैसै ग्रंथ एवं पुस्तक को पांच अथवा इक्यावन खमासमण देने
चाहिए .
जैसै हम प्रतिदिन चंदन से मूर्ति की अर्चना करते हैं
वैसै प्रतिदिन वासक्षेप से ग्रंथ एवं पुस्तक की अर्चना करनी चाहिए .
शुभ अवसर पर ज्ञान की अष्ट प्रकारी पूजा भी हो सकती है .
२ .
जैसै हम चौबीस तीर्थंकर के नाम की माला गिनते हैं
वैसै ॐ ह्रीं नमो नाणस्स – इस मंत्र की माला गिननी चाहिए .
यह माला एक भी गिन सकते हैं , पांच भी गिन सकते हैं और बीस भी गिन सकते हैं .
३ .
जैसै हम तीर्थंकर भगवान् के समक्ष
एक लोगस्स अथवा चार लोगस्स का काउसग्ग करते हैं
वैसे ग्रंथ या पुस्तक के समक्ष
पांच लोगस्स या इक्यावन लोगस्स का काउसग्ग करना चाहिए .
——-×——
ज्ञान को खमासमण देकर वंदना करने से सद् बुद्धि का विकास होता है .
ज्ञान का मंत्र जाप करने से सद् बुद्धि का विकास होता है .
ज्ञान का मंत्र काउसग्ग करने से सद् बुद्धि का विकास होता है .
स्वाध्याय –
१ . विनय किसे कहते हैं ?
२ . विनय के विषय में प्रथम बात क्या है ?
३ . विनय के विषय में द्वितीय बात क्या है ?
४ . विनय के विषय में तृतीय बात क्या है ?
Leave a Reply