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जैन सिलेबस : ज्ञान आचार . २ : विनय

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आदर देने से विनय होता है .

सत्कार करने से विनय होता है .

नमस्कार करने से विनय होता है .

अहोभाव दिखाने से विनय होता है .

अर्चन – पूजन करने से विनय होता है .

ज्ञान का विनय करने से सद् बुद्धि का विकास होता है .

ज्ञान का विनय तीन प्रकार से होता है .

१ .

जैसै हम मूर्ति को हाथ जोडकर आदर देते हैं

वैसै ग्रंथ एवं पुस्तक को हाथ जोडकर आदर देना चाहिए .

जैसै हम मूर्ति को तीन खमासमण देते हैं

वैसै ग्रंथ एवं पुस्तक को पांच अथवा इक्यावन खमासमण देने

चाहिए .

जैसै हम प्रतिदिन चंदन से मूर्ति की अर्चना करते हैं

वैसै प्रतिदिन वासक्षेप से ग्रंथ एवं पुस्तक की अर्चना करनी चाहिए .

शुभ अवसर पर ज्ञान की अष्ट प्रकारी पूजा भी हो सकती है .

२ .

जैसै हम चौबीस तीर्थंकर के नाम की माला गिनते हैं

वैसै ॐ ह्रीं नमो नाणस्स – इस मंत्र की माला गिननी चाहिए .

यह माला एक भी गिन सकते हैं , पांच भी गिन सकते हैं और बीस भी गिन सकते हैं .

३ .

जैसै हम तीर्थंकर भगवान् के समक्ष

एक लोगस्स अथवा चार लोगस्स का काउसग्ग करते हैं

वैसे ग्रंथ या पुस्तक के समक्ष

पांच लोगस्स या इक्यावन लोगस्स का काउसग्ग करना चाहिए .

——-×——

ज्ञान को खमासमण देकर वंदना करने से सद् बुद्धि का विकास होता है .

ज्ञान का मंत्र जाप करने से सद् बुद्धि का विकास होता है .

ज्ञान का मंत्र काउसग्ग करने से सद् बुद्धि का विकास होता है .

स्वाध्याय – 

१ . विनय किसे कहते हैं ?

२ . विनय के विषय में प्रथम बात क्या है ?

३ . विनय के विषय में द्वितीय बात क्या है ?

४ . विनय के विषय में तृतीय बात क्या है ? 

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