धर्म के लिए तैयारी करनी चाहिए . एक तैयारी भावनात्मक होती है . एक तैयारी भौतिक होती है .
अपने मन को कुछ ऊँचे और अच्छे विचार देने से भावनात्मक तैयारी होती है . मन कई पूर्वधारणा बांधकर बैठा है . नया विचार अगर आनंद प्रमोद का है तो मन उसे मानेगा . नया विचार अगर आध्यात्मिक है तो मन उसे तूर्त नही मानेगा . मन को अधर्म की आदत है . धर्म की आदत मन को लगानी पड़ती है .
आप ने जो कान से सुना उसे मन मान ले यह जरूरी नही है . मन न भी माने . धर्म श्रवण कान से सब करते है . धर्म श्रवण मनसे नही हो रहा है . नया नया सुनने वाले लोग पुरानी आदते तो छोड़ते नही है . मन को बदलने की कला सीखे और इसी कला को विकसित करने के लिए धर्म श्रवण करे .
धर्म की बातें सुनना यह प्रथम चरण है .
धर्म की बातें याद रखना यह दूसरा चरण है .
धर्म की बातें सोच में लाना यह तीसरा चरण है .
धर्म की बातों का आधार लेकर सोच का ढांचा बदलना यह चतुर्थ चरण है .
धर्म की बातों का आधार लेकर जीवन को शनै: शनै: बदलना यह पंचम चरण है .
कुछ लोग पहले चरण तक भी पहुचे नही हैं .
कुछ लोग पहले चरण से आगे बढ़ते नही हैं .
आज की धार्मिकता को यह समस्या लागु है .
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