दो सद् गुण जीवन को अनुशासित बनाते है .
सन्तोष और समर्पण .
आप को जो मिला है वह महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी है ऐसे आत्मविश्वास का सर्जन करना वह संतोष है .
आप को जीवन अनेक लोगो का आधार लेकर चल रहा है . प्रत्येक आधाररूप व्यक्तिओं के प्रति आदरभाव बनाये रखना यह समर्पण है .
जो संतोष और समर्पण को अपनी भावनाओं की पार्श्वभूमि में बनाए रखता है वह उत्तम विचार को छु सकता है .
जीचन में दो काम अवश्य करने चाहिये .
एक , किसी मोक्षगामी आत्मा का आत्मीय परिचय हो .
दो , अपने कारण किसी आत्मा को मोक्ष मिले या उसका मोक्ष का मार्ग सरल बने मिले ऐसा व्यक्तिगत आदानप्रदान हो .
आप अधिक से अधिक धार्मिक सज्जनों को सन्मान दे . आप धर्मप्रेमी को आदर देते हो तब उसकी आध्यात्मिक सुगंध आप को मिलती है . धर्म के दरबार में कोई छोटा नहीं है और कोई बडा नहीं है .
यहां केवल देव गुरु और आत्मा का महत्त्व है . आप का अपना व्यक्तिगत धर्म जो फल देता है उससे दसगुना फल धर्मात्माओं के आदर से संप्राप्त होता है .
धर्मात्माओं के समूह को संघ कहा जाता है . संघ को
सन्मान देने से एवं संघ के लिये उपयोगी बनने से प्रबल पुण्य उपार्जित होता है .
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