Press ESC to close

चातुर्मास कथा : सुकृत सागर . १

मालवदेश में नांदुरी नाम की नगरी थी . एक धनिक था : श्रीपद्म . वैभवशाली घर था . बहोत बड़ा कारोबार था . आयुष्य समाप्त हो गया . उसका पुत्र था देदशाह . देदशाह की पत्नी . विमलश्री . पिता की अलविदा के बाद व्यवसाय और व्यवहार में व्यवधान आ गएं . पैसे डूब गये और बहोत सारा कर्जा हो गया . देदशाह पर दबाव आ गया . वह अकेले घर छोड़कर जंगल में भाग गया .

गहरे जंगल में उसे महायोगी नगार्जुन के दर्शन हुएं . ध्यानासीन योगी की तीन दिन सेवा करी . चौथे दिन योगी ने ध्यान पूर्ण किया . देदशाह को चमत्कारिक रूप से भोजन करवाया . देदशाह की परीक्षा ली और देदशाह में उत्तम पात्रता साबित हुई यह देखकर योगी ने देदशाह को सुवर्ण सिद्धि का चमत्कारिक प्रयोग सिखाया . इस प्रयोग में विविध औषधिओं के द्वारा एवं अग्नि प्रयोग के जरिये लोहे को सोना बनाया जाता है .

अब देदशाह वापिस घर आयें . गुप्त रूप से सुवर्ण सिद्धि प्रयोग के द्वारा सोना बनाते गएं . सारा कर्जा उतार दिया . एक अच्छा व्यापार शुरू किया और सफल हो गएं . लोगों में नामना हो गई . लेकिन कुछ ईर्षालुओं ने देदशाह के लिए गलत अफवाह फैला दी कि देदशाह को भूमि से निधान मिला है , वह निधान राजा को मिलना चाहिए . इस बात को राजा तक पहुंचाई गई . देखनेवाली बात यह थी कि राजा ने बात को सच्ची मान भी ली . राजा ने देदशाह को दरबार में बुलाया . निधान के विषय में प्रश्न पुछा .
देदशाह ने राजा को साफ भाषा में बताया कि मुझे निधान जैसा कुछ भी नहीं मिला है . मैं जो भी कर रहा हूं वह देव गुरु का आशीर्वाद है . आप को लोगों के द्वारा बनाई गई बातों पर भरोसा नहीं करना चाहिए .
राजा को जवाब सुनकर संतोष नहीं हुआ . राजा ने देदशाह को जेल में कैद करवाया . जेल में देदशाह श्री स्तंभन पार्श्वनाथ भगवान् के ध्यान में एक लीन होकर मंत्रजाप करने लगें .

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *