तीन आध्यात्मिक समस्याएं हैं .
१ . काम वासना के विचार
२ . अहंकारी मानस
३ . हताशावादी सोच
हम धर्म के पास आते हैं लेकिन तीनों समस्याओं के कारण धर्म में तीव्रता नहीं बनती है . तीनों समस्याओं के कारण धर्म में शिथिलता आ जाती है .
गौतम गुरु तीनों समस्याओं को कमज़ोर कर सकते हैं . हमने , अंगूठे अमृत वसे – याद रखा है और हमारी पामर ईच्छाओं की पूर्ति के लिए गौतम स्वामीजी को चुन लिया है . हम जब भी गुरु के पास जाते हैं – कुछ न कुछ मांग ही लेते हैं . चमत्कारी नाम है तो गौतम गुरु के समक्ष पहुंचते ही इच्छाएं भी जग जाती है . टेंशन याद आते हैं , अधूरे प्रोजेक्ट याद आते हैं , संबंध के तनाव याद आते हैं , स्वार्थ याद आते हैं और गौतम गुरु के समक्ष खड़े खड़े मांगने लगते हैं . आप अपनी भौतिक ईच्छाओं के लिए गौतम गुरु का ईस्तमाल मत कीजिये . हमें गौतम गुरु से आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान मांगना चाहिए .
हमारी प्रथम समस्या है काम वासना के विचार .
गौतम गुरु का ब्रह्मचर्य असाधारण था . वैसे तो गौतम गुरु , वीतराग नहीं थें क्योंकि स्नेहराग जीवित था . लेकिन , गौतम गुरु की निर्विकार अवस्था , वीतराग प्रभु जैसी हुआ करती थी . सिद्धचक्र महायंत्र में एक मंत्र आता है – ॐ ह्रीं अर्हं नमो घोरगुणबंभयारीणं . ४८ लब्धिओं में एक लब्धि है सर्वोत्कृष्ट ब्रह्मचर्य . गौतम गुरु की ब्रह्मचर्य लब्धि सर्वोच्च थी . हम अपनी कामभावनाओं को कम करने का संकल्प बनाएंगे और गौतम गुरु के आशीर्वाद मांगेंगे . प्रतिदिन प्रार्थना करेंगे , थोड़े ही दिनों में दिखेगा कि मन के विकार कम हो रहे हैं . गौतम गुरु का चमत्कार ऐसे काम करेगा कि हमारा भावनाओं पर , आंंखों पर , और प्रवृत्तिओं पर जो अंकुश नहीं है वह अंकुुुश आने लगेगा .
द्वितीय समस्या है अहंकारी मानस .
हम धर्म करते हैं लेकिन हमारा अहंकार कम नहीं होता है . गौतम गुरु को अहंकार जैसा कुछ था ही नहीं . गौतम गुरु , स्वयं को छोटा एवं सामान्य समज़ते थें . अनंत लब्धि संपन्न होना कोइ साधारण बात नहीं है लेकिन गौतम गुरु को अनंत लब्धि का अहंकार नहीं था . प्रभु वीर के प्रथम पट्टधर होना कोई साधारण बात नहीं है लेकिन गौतम गुरु को प्रभु वीर के प्रथम पट्टधर होने का कोइ अहंकार नहीं था . प्रभुवीर को पूछा गया कि आप के शासन में सबसे ऊंचा साधक कौन है तब प्रभु ने गौतम गुरु का नाम नहीं लिया बल्कि धन्ना अणगार का नाम लिया . खुद की प्रशंसा न हो और किसी अन्य की प्रशंसा हो ऐसी परिस्थिति में अहंकार को चोट पहुंचती है . जबकि गौतम गुरु धन्ना अणगार की प्रशंसा के कारण प्रसन्न हुए थें . हम स्व प्रशंसा की कामना रखते हैं एवं अन्य की प्रशंसा के प्रति ईर्षा रखते हैं . यही अहंकार है . गौतम गुरु के समक्ष खड़े रहकर प्रार्थना कीजिये कि – आप के पास अहंकार करने लायक बहोत कुछ था फिर भी आपने अहंकार किया नहीं और यहां हमारे पास अहंकार करने लायक कुछ भी नहीं है फिर भी हम खुद का अहंकार बढ़ाते ही जा रहे हैं . हम जो भी करते हैं , अहंकार पूर्वक करते हैं और अहंकार के लिये करते हैं . हे , मेरा अहंकार कम करो , खत्म करो .
आप प्रतिदिन गौतम गुरु को विनंती करो . धीरे धीरे अहंकार में कमी आएगी .
हमारी तृतीय समस्या है निराशावादी सोच .
हम अच्छे काम शुरू करनेे से पूर्व बहोत डरते हैं . दान हो , तप हो , नियम हो , क्रिया हो या और कुछ हो , हम खुद भी डरते हैं और हम अन्य को भी डराते हैं . कभी कभी काम शुरू ही नहीं करते हैं , कभी कभी तो काम अधूरा छोड देते हैं . हमारा आत्म विश्वास ढीला हो जाता है कभी कभी . यह समस्या छोटे काम से लेकर बडे काम तक फैली हुई है . गुरु गौतम सकल श्री संघ के नेता थें , निर्देशक थें , मार्गदर्शक थें . आप गौतम गुरु से हिंमत मांगीए , हौसला मांगीए , जोश मांगीए . धर्मप्रवृत्तिओं के साथ जो निराशावादी सोच जुडी रहती है उसे कम करने का संकल्प कीजिए गौतम गुरु की मूर्ति के समक्ष . प्रतिदिन प्रार्थना कीजिए . धीरे धीरे आपकी हिंमत बढेगी और धर्म प्रवृत्ति का व्याप भी बढेंगा , बढता रहेता . गौतम गुरू का प्रभाव आप के स्वभाव पर काम करेगा .
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