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३. अनुचित तुलना एवं केेेेवलज्ञान

PicsArt_03-30-12.55.41प्रभु वीर और गुरु गौतम की तुलना हो नहीं सकती है . प्रभु वीर अनंत आसमान है और गौतम गुरु एक राज महालय है . प्रभु वीर अथाह समुद्र है और गौतम गुरु एक सरोवर  है . दोनों की जगह अलग है . तुलना का प्रश्न ही नहीं है . लेकिन फिर भी तुलना करने का मन होता है .

अनुचित तुलना – १
प्रभु वीर ने दीक्षा ली उस दिन प्रभु वीर को एक भी शिष्य हुआ नहीं था . गुरु गौतम ने दीक्षा ली उसी दिन गुरु गौतम को ५०० शिष्य मिले थें .
अनुचित तुलना – २
प्रभु वीर ने जिस दिन दीक्षा ली उस दिन अन्य कोइ दीक्षा नहीं हुई थी . गुरु गौतम ने दीक्षा ले उस दिन कुल मिला कर ४४११ दीक्षाए हुई थीं .
अनुचित तुलना – ३
प्रभु वीर , दीक्षा के बाद साडे बारह साल तक अकेले रहें . गौतम गुरु को इस प्रकार अकेले रहने का प्रसंग नहीं आया .
अनुचित तुलना – ४
प्रभु वीर के समक्ष , दीक्षा के बाद साडे बारह साल तक कड़े उपसर्ग आएं . गौतम गुरु को दीक्षा के बाद साडे बारह साल तक कड़े या सामान्य उपसर्ग आएं हो ऐसा उल्लेख मिलता नहीं है .
अनुचित तुलना – ५
प्रभु वीर के १४००० शिष्य थें इनमें से ७०० महात्माओं को केवलज्ञान मिला था . गुरु गौतम के ५०००० शिष्य थें और सभी शिष्यों को केवलज्ञान मिला था .
अनुचित तुलना – ६
प्रभु वीर जिसे दीक्षा दे उसे केवलज्ञान मिलेगा ऐसा निश्चित नहीं था . गौतम गुरु जिसे भी दीक्षा दे उसे केवलज्ञान मिलेगा यह निश्चित था .
अनुचित तुलना – ७
प्रभु वीर स्वयं केवल ज्ञानी बनें उसके बाद में ही प्रभु ने अन्य को केवलज्ञान दिया था . गौतम गुरु स्वयं केवल ज्ञानी नहीं बने थें तब भी गुरु ने अन्य को केवलज्ञान दिया था .

यह अनुचित तुलना प्रभु वीर की गरिमा को कम कर नहीं सकती है . प्रभु तीर्थंकर थें और गौतम गुरु तीर्थंकर नहीं थें यह एक बात काफी है प्रभु की महिमा को समझाने के लिये . लेकिन उक्त अनुचित तुलना से गौतम गुरु की गरिमा समझ में आती है .

गौतम गुरु के लिए अहोभाव बढ़ना चाहिए .
गौतम गुरु के लिए अहोभाव बढ़ाना चाहिए .
गौतम गुरु के लिए अहोभाव रखने से केवलज्ञान नजदीक आता है . गुरु गौतम केवलज्ञान स्पेश्यलिस्ट थे . गौतम गुरु के दर्शन करते समय , मंत्रजाप करते समय केवलज्ञान की कामना करो , वीतराग भाव की कामना करो . साधारण मनोकामनाएं मत रखो . बड़ी कामना , आध्यात्मिक कामना रखो . देनेवाला सबकुछ दे सकता है तो कमतर क्यूं मांगना . जो तुच्छ चीज़ें मांगता है वह खुद को भिखारी  साबित कर देता है . औदयिक भाव तुच्छ होता है . जो केवलज्ञान मांगता है वह खुद को भक्त साबित कर देता है . क्षायिक भाव उत्तम होता है .  गौतम गुरु ने प्रभु वीर से बार बार केवलज्ञान मांगा था . आखिरकार उन्हें केवलज्ञान मिल गया . आप गौतम गुरु से केवलज्ञान मांगिये . गौतम गुरु ने ५०,००० आत्माओं को केवलज्ञान दिया है , वॉ आप को भी केवलज्ञान तक पहुंचाएंगे . इस जन्म में न सही , लेकिन आगामी जन्म में आप को गौतम कृपा से  केेेवलज्ञान मिल सकता है . (क्रमशः)

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