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जैन सिलेबस : तप आचार . १० : स्वाध्याय

धर्मग्रंथ का अभ्यास करते हुए मन को शुभ भावना से भावित रखना , इसे स्वाध्याय कहते है .
तीन बातें हैं .
१ .
नए नए सूत्र को कंठस्थ करने चाहिए .
जो सूत्र कंठस्थ हो चुके है उनका पुनरावर्तन करना चाहिए .
जिन सूत्रों का विस्मरण अथवा अर्धविस्मरण हो चुका है उन्हें वापिस याद करने चाहिए .
२ .
सूत्रों के अर्थ सिखने चाहिए .
ग्रंथों के अनुवाद एवं विवेचन पढ़ने चाहिए .
ग्रंथों के पदार्थों को बरोबर याद रखना चाहिए .
३ .
व्याख्यान श्रवण करना चाहिए .
वाचना श्रवण करना चाहिए .
व्याख्यान एवं वाचना में सुनने मिला उसे बरोबर याद रखना चाहिए .
—-
स्वाध्याय –
१ . स्वाध्याय किसे कहते है ?
२ . स्वाध्याय का प्रथम नियम क्यां है ?
३ . स्वाध्याय का द्वितीय नियम क्यां है ?
४ . स्वाध्याय का तृतीय नियम क्यां है ?

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