ईर्ष्या से बचने के लिए कुछ इस प्रकार सोचें .
अन्य को मिला हुआ सुख या सन्मान देखकर आप यह सोचें कि
ऐसा कुछ मुज़े नही मिला तो आप उसे देख देख कर दुखी बन जायेगे .
आप ऐसा सोचिये उसे जो भी मिला उस से मुज़े कोई नुक़सान नही है .
जिसे सुख या सन्मान का लाभ हुआ उन्होंने पूर्व के समय में बड़े सुकृत किये होगे वरना
ऐसी उपलब्धि हासिल न होती .
अन्यका बड़ा सुख उसके पूर्वोपार्जित पुण्य का फल है .
आप पुण्योदय का आदर करे .
आप अगर अंदरूनी योग्यता विकसित को चुके हो तो आप की सद्गति निश्चित है .
सद्गति का लाभ योग्यता पर आधारित है .
अयोग्य व्यक्ति श्रीमंत होने के बावजूद परलोक में दुर्गति में चले जाते है .
योग्य व्यक्ति श्रीमंत न होने पर भी सद्गति अवश्य प्राप्त कर लेती है .
अन्य की बाह्य उपलब्धि को ईर्ष्या वश देखना एक ऐसी गलती है
जिसे सुधार लेना हमारे हाथ में है .
– Devardhi –
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