( हरिगीत )
मंगल गुफा प्रभु पासनी
सम्मेतशिखरे सोहती
निर्वाण कल्याणक स्थळे
श्यामल शिला मन मोहती
श्री पासजीना श्वासनी
यात्रा अहीं अटकी हती
ते कालनी ते समयनी
सुरभि अही जागृत थती 1
कोयल टहुंक रही मधुवन
मोर नाच्या आंगणे
छलकाया झरणा चोतरफ
आनंद जाग्यो कणे कणे
एक एक डाळे पांदडा
वृक्षो उपर झूल्या हता
ज्यारे प्रभुनी परम गतिनां
बारणां खूल्या हता……2
ए श्रावणी महिनो हतो
सुद अष्टमीनो दिन हतो
काउसग्गनी मुद्रा हती
मासक्षमणनो तप हतो
साथे हता तेत्रीस मुनि
ज्यारे प्रभु मोक्षे गया
आ श्याम शुभ शिला उपर
प्रभु शुद्ध सिद्ध दशा वर्या…3
प्रभु देहमुक्त थया अहीं
प्रभु कर्ममुक्त बन्या अहीं
प्रभु दोषमुक्त बन्या अहीं
प्रभु पूर्ण मुक्त बन्या अहीं
ऊंचा शिखर पर आ गुफा
एकांत प्रभुनुं साचवे
तेथी ज सौ आ सिद्धशिला
पासे माथुं टेकवे…..4
झूमझूम वहे छे वायरो
ने आसमान अनंत छे
छे दूर सुदूर सुधी पहाडी
दिव्य भव्य दिगंत छे
ज्यां रोशनी देखाय छे
त्यां तेज एनुं छवाय छे
आखाय आ गिरिराज ने
श्री पार्श्वनाथ कहेवाय छे…5
ए जन्म ले ते पूर्वे एनां
तीर्थ कैंक बनी गया
ए नाम धरे ते पूर्वे तो
उपनाम बहु प्रचलित थया
ए पांचसो कल्याणकोने
देवभवमां उजवे
तेथी ज तो गाजे छे
एनुं नाम एक एक उत्सवे.. 6
वृक्षो नवा उगी गया पण
धूळ माटी ए ज छे
मंगल ध्वजाने झूलवे ते
पवन एनो ए ज छे
रस्ता नवा बंधाया छे पण
चैत्य सौ प्राचीन छे
वीसेय तीर्थंकर तणी
ऊर्जा तो नित्य नवीन छे…..7
ऊंचा शिखर पर भव्य मंदिर
आज पण जोवा मळे
श्री मोक्ष कल्याणक तणी
सुंदर गुफा पण झळहळे
देवर्धिनो त्यां वास छे
ज्यां पासजीनी सुवास छे
मुजने परमपद आपशे आ तीर्थ
ए विश्वास छे …8
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