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परोपकार की शक्ति : जीवन की समृद्धि

अन्यों का जीवन कैसा होगा यह आप के हाथ में नहीं है . अन्यों के जीवन में आप का योगदान क्यां होगा यह आप के हाथ में है . आप कितने सहायक हो सकते हैं उसकी सीमा केवल आप ही तय कर ले . पुण्य का उपयोग केवल स्वार्थ के लिए न हो . किसी का कोई काम रुक गया है , किसी को कोई तकलीफ है तब आप उसे सहायकारी बनते है . यही परोपकार होता है . श्रीपाल राजा नवपद की आराधना से विशिष्ट पुण्य उपार्जित कर लेते हैं तत् पश्चात् अन्यों को सहायक बनते ही रहते हैं .

+ जब उन्हें लगा कि मुझे खुद की स्वतंत्र अस्मिता सिद्ध करनी है तब वह उज्जैनी नगरी को छोड़कर देश देशांतर की यात्रा पर निकल पड़े . मार्ग में उन्होंने एक मंत्रसाधक को दिखा . उसकी मंत्रसिद्धि हो नहीं रही थी . मंत्रसाधक की बिनती से श्रीपाल उसके उत्तरसाधक बनें . श्रीपाल के कारण उसे सिद्धि मिल गई . प्रसन्न होकर मंत्रसाधक ने श्रीपाल को दो यंत्र दिए . प्रथम यंत्र को ताबीज में बांधकर हाथ में पहनने से के बाद आदमी पानी में डूब नहीं सकता . द्वितीय यंत्र को ताबीज में बांधकर बांधने से आदमी को कोई हथियार नुकसान नहीं पहुंचा सकता . श्रीपाल की परोपकार शक्ति की यह शुरुआत थी .

+ आगे जाकर श्रीपाल ने अन्य एक विद्यापुरुष को सुवर्ण सिद्धि में सहाय की थी . विद्या पुरुष को भरपूर सोना मिला . विद्या पुरुष ने श्रीपाल को सोना देना चाहा . लेकिन श्रीपाल राजा ने उस से तनिक भी सोना लिया नहीं . विद्या पुरुष ने जबरन कुछ सोना श्रीपाल के कपडे में बांध दिया .

+ श्रीपाल आगे निकल कर भरूच पहुंचे वहां पर धवल सेठ के सैनिकों है उन्हें पकड़ने की कोशिश की . हालांकि श्रीपाल ने सब को परास्त किया . श्रीपाल स्व मर्जी से धवल शेठ के पास पहुंचें . वहां उन्हें पता चला कि धवल शेठ के ५०० जहाज नर्मदा नदी में फंस गए हैं और किसी दैवी उपद्रव के कारण जहाज आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं . श्रीपाल ने सिंहगर्जना की और नव पद के प्रभाव से दैवी उपद्रव समाप्त हो गया . जहाज पानी में आगे बढ़ने लगें . इस काम के बदले में श्रीपाल ने धवल शेठ से एक लाख सुवर्ण मुद्रा ली . इस प्रकार श्रीपाल राजा का धन उपार्जन शुरू हो गया .

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