हमे उतना ही धर्म करना चाहिए जितनी हमारे पास शक्ति है , यथा शक्ति . हमारी शक्ति की सीमा होती है . हमे हमारी सीमा का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए . ये सच है कि हम अपनी शक्ति बढ़ा सकते हैं . पर एक सीमा से आगे जाना मुश्किल होता है . अपनी क्षमता से अधिक करने की कोशिश से लाभ कम होता है और हानि अधिक होती है .
तीन बातें हैं .
१ .
हमारे पास जितना धन है उतना ही दान करना चाहिए . परिवार , घर एवं व्यवसाय तकलीफ में आ जाए इस प्रकार दान नहीं देना चाहिए .
२ .
तप करने में इतना आगे न बढ़े कि खुद के आरोग्य अथवा आयु को ठेस पहुंचे .
३ .
हमें धर्म को समय देना चाहिए लेकिन इतना समय नहीं देना चाहिए जिससे आरोग्य , परिवार , घर एवं व्यवसाय की उपेक्षा हो जाए .
शक्ति की सीमा में रहकर धर्म करने से धर्म की प्रशंसा होती है .
सीमा का अतिक्रमण करते हुए धर्म करने से धर्म की निंदा होती है .
याद रहे कि जैसे उत्कृष्ट धर्म प्रवृत्ति करनी जरूरी है वैसे अतिरेक से बचना भी जरूरी है .
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स्वाध्याय –
१ . यथा शक्ति का अर्थ क्यां है ?
२ . यथा शक्ति का प्रथम नियम क्यां है ?
३ . यथा शक्ति का द्वितीय नियम क्यां है ?
४ . यथा शक्ति का तृतीय नियम क्यां है ?
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