जो भी धर्मात्मा होते हैं उन के धर्म की प्रशंसा करनी चाहिए .
जो भी गुणवान् होते हैं उन के एक एक सद् गुण की प्रशंसा करनी चाहिए .
जो भी शुभ प्रवृत्तिशील लोग होते हैं उन के एक एक सत् कार्य की प्रशंसा करनी चाहिए .
ऐसी प्रशंसा को उपबृंहणा कहते है .
तीन बातें याद रखनी चाहिए .
१ .
धर्मात्मा को मिलकर उसे सच्चे दिल से कहना चाहिए कि –
आप जो धर्म करते हो वह अनुमोदनीय है .
गुणवान् को मिलकर उसे सच्चे दिल से कहना चाहिए कि –
आप में जो सद् गुण है वह अनुमोदनीय है .
शुभ प्रवृत्तिशील व्यक्ति को मिलकर उसे सच्चे दिल से कहना चाहिए कि –
आप जो शुभ प्रवृत्ति करते हो वह अनुमोदनीय है .
ऐसी व्यक्तिगत प्रशंसा को उपबृंहणा कहते है .
२ .
धर्मात्मा , गुणवान् अथवा शुभ प्रवृत्तिशील व्यक्ति की उपस्थिति में उनकी प्रशंसा , तब करनी चाहिए जब अनेक लोग उपस्थित हो . ऐसी सार्वजनीन प्रशंसा से धर्म का , सद् गुण का एवं शुभ प्रवृत्ति का बड़ा सन्मान होता है .
ऐसी प्रशंसा को शुभ प्रशंसा कहते है .
३ .
धर्मात्मा , गुणवान् अथवा शुभ प्रवृत्तिशील व्यक्ति की अनुपस्थिति में भी उनकी प्रशंसा , जगह जगह पर करनी चाहिए .
ऐसी प्रशंसा को अनुमोदना कहते है .
उपबृंहणा आचार में तीनों प्रकार से प्रशंसा की जाती है .
स्वाध्याय –
१ . उपबृंहणा आचार किसे कहते है ?
२ . उपबृंहणा आचार का प्रथम प्रकार क्यां है ?
३ . उपबृंहणा आचार का द्वितीय प्रकार क्यां है ?
४ . उपबृंहणा आचार का तृतीय प्रकार क्यां है ?
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