मन को शुभ विषय में एकाग्रता पूर्वक जोड़ना चाहिए . वोही ध्यान है .
तीन बातें हैं .
१ .
व्याख्यान , वाचना अथवा वांचन के समय उसीमें संपूर्ण तल्लीनता बनानी चाहिए .
२ .
किसी शास्त्र पंक्ति , किसी श्लोक , किसी पद , किसी स्तुति के शब्दों के भावार्थ को सोचते हुए उसी में एकाग्र हो जाना चाहिए .
३ .
प्रतिक्रमण , चैत्य वंदन आदि क्रियाओं में जो सूत्र बोले जाते हैं उनके प्रत्येक अर्थ का स्मरण एवं चिंतन करना चाहिए .
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स्वाध्याय –
१ . ध्यान किसे कहते हैं ?
२ . ध्यान का प्रथम कार्य क्यां है ?
३ . ध्यान का द्वितीय कार्य क्यां है ?
४ . ध्यान का तृतीय कार्य क्यां है ?
जैन सिलेबस : तप आचार . ११ : ध्यान
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