हम दिनभर सोचते रहते हैं .
हम रात में सपनों में भी सोचते रहते हैं .
यह जरूरी है कि हम धर्म के विषय में सोचते रहें .
सूत्र और अर्थ का आधार लेकर पूर्ण श्रद्धा पूर्वक
धर्म चिंतन करना – उसे तदुभय कहते है .
धर्म चिंतन के तीन मार्ग है .
१ .
धार्मिक व्याख्यान का श्रवण करना चाहिए .
धार्मिक व्याख्यान के श्रवण में
मन को एकाग्र बनाए रखना चाहिए .
धार्मिक व्याख्यान के श्रवण में
जो सुना उसे याद रखना चाहिए .
धार्मिक व्याख्यान के श्रवण में जो सुनने मिला
उसकी चर्चा किसी के साथ करनी चाहिए .
२ .
धार्मिक पुस्तक का सद् वांचन करना चाहिए .
आत्मा के विषय में लिखी गई किताबें पढनी चाहिए .
धर्म क्रियाओं की विधि समझाने वाली किताबें पढनी चाहिए .
दोष एवं पाप का बोध देने वाली किताबें पढनी चाहिए .
जैन कथाओं की किताबें पढनी चाहिए .
जैन इतिहास की किताबें पढनी चाहिए .
जैन तत्त्व चिंतन की किताबें पढनी चाहिए .
३ .
गीतार्थ गुरु भगवंतों के श्रीमुख से वाचना सुननी चाहिए .
धार्मिक शिक्षकों के श्रीमुख से वाचना सुननी चाहिए .
जिज्ञासा भाव से प्रश्न पूछ पूछ कर
समुचित प्रत्युत्तर प्राप्त करने चाहिए .
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स्वाध्याय –
१ . तदुभय आचार किसे कहते हैं ?
२ . तदुभय के विषय में प्रथम बात क्या है ?
३ . तदुभय के विषय में द्वितीय बात क्या है ?
४ . तदुभय के विषय में तृतीय बात क्या है ?
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