Press ESC to close

जैन सिलेबस : ज्ञान आचार . ५ : अनिह्नव

_DSC3200

हम जिस से धर्म का ज्ञान लेते हैं

उसे याद रखना यह हमारी फर्ज है .

धर्म ज्ञान के दाताओं को

प्रशंसा आदि के द्वारा सम्मानित करना चाहिए .

धर्म ज्ञान के दाताओं को

निंदा आदि के द्वारा अपमानित नहीं करना चाहिए .

धर्म ज्ञान के दाताओं को

मन से एवं वचन से याद करना , उसे अनिह्नव कहते है .

अनिह्नव आचार के विषय में तीन बातें समझ लेनी चाहिए .

१.

आप को जिस के वचन से –

धर्म प्रवृत्ति एवं धर्म क्रिया करने की  प्रेरणा मिली ,

धर्म प्रवृत्ति एवं धर्म क्रिया करने का उत्साह मिला ,

धर्म प्रवृत्ति एवं धर्म क्रिया करने का मार्गदर्शन मिला

उसे आप जीवनभर के लिये आदरपूर्वक याद रखिए .

वह साधु भी हो सकता है .  वह साध्वी भी हो सकती है .

वह श्रावक भी हो सकता है . वह श्राविका भी हो सकती है .

२.

आप को जो जो सूत्र , स्तवन या पद कंठस्थ है

उसके रचनाकार का नाम एवं इतिहास

आप को मालूम होना चाहिये .

सूत्र , स्तवन या पद के रचनाकारों को

अधिक से अधिक भाव वंदना करनी चाहिये .

३.

अपने ज्ञान का , अपनी प्रतिभा का

अहंकार नहीं रखना चाहिए.

किसी भी सफलता का यश ,

अकेले अपने नाम पर नहीं लेना चाहिए .

उपकारीओं के एक एक उपकार को एवं

सहयोगिओं के एक एक सहयोग को भूलना नहीं चाहिए .

आप को जब जब बहुमान मिले तब तब

उपकारी एवं सहयोगियों का नाम बोलना चाहिये .

स्वाध्याय – 

१ . अनिह्नव आचार किसे कहते हैं ?

२ . अनिह्नव के विषय में  प्रथम बात क्यां है ?

३ .  अनिह्नव के विषय में द्वितीय बात क्यां है ?

४ . अनिह्नव के विषय में तृतीय बात क्यां है ? 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *