वाणी से धर्म विरहित वचन न बोलना , उसे वचन गुप्ति कहते है . इसका पूर्ण पालन साधु जीवन में संभवित है .
तीन बातें याद रखनी चाहिए .
१ .
ऐसा वचन न बोले जिस से हिंसा की प्रेरणा मिले या हिंसा की अनुमोदना हो .
ऐसा वचन न बोले जिस से असत्य की प्रेरणा मिले या असत्य की अनुमोदना हो .
ऐसा वचन न बोले जिस से चोरी की प्रेरणा मिले या चोरी की अनुमोदना हो .
ऐसा वचन न बोले जिस से मैथुन की प्रेरणा मिले या मैथुन की अनुमोदना हो .
ऐसा वचन न बोले जिस से परिग्रह की प्रेरणा मिले या परिग्रह की अनुमोदना हो .
२ .
जिन आज्ञा से विपरीत वचन न बोले .
धर्म ग्रंथों से विपरीत वचन न बोले .
धर्म क्रिया विरोधी वचन न बोले .
३ .
वही बोलना चाहिए जो धर्म के अनुकूल हो .
वही बोलना चाहिए जो आत्मा को लाभकारी हो .
वही बोलना चाहिए जो मोक्षमार्ग के लिए उपयोगी है .
स्वाध्याय –
१ . वचन गुप्ति किसे कहते है ?
२ . वचन गुप्ति का प्रथम प्रकार क्यां है ?
३ . वचन गुप्ति का द्वितीय प्रकार क्यां है ?
४ . वचन गुप्ति का तृतीय प्रकार क्यां है ?
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