( दोहरा )
चमत्कारी भगवान है अंतरिक्ष महाराज
श्रद्धा से सुमिरन करो सफल होत सभी काज . १
भूमि को ना स्पर्श करे ऐसी मूर्ति महान
अजबगजब सौंदर्य है सुखदाई है ध्यान . २
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( चौपाई )
अंतरिक्ष भगवान मनोहर पारसनाथजी महिमासागर
रहते है धरती से ऊपर जग जयकारी शक्ति अगोचर . १
अतुल बली अरिहंत जिनेश्वर अगणित देव है सेवा तत्पर
श्याम रंग की प्रतिमा सुंदर तीन लोक के जन दे आदर . २
परम चमत्कारी है पारस धर्म धनुर्धारी है पारस
जो भी पास प्रभु को ध्यावे उसके सारे दुःख मिट जावे . ३
ग्यारह लाख और अस्सी हज़ार वर्ष पुरातन मूर्ति उदार .
गोबर मिट्टी से बनी मूर्ति रतन समान है तेज की स्फूर्ति . ४
खर दूषण विद्याधर हाथ मूरत रूप धर्यो जगनाथ
कूँवे में प्रतिमा को थापी कणकण प्रभु की ऊर्जा व्यापी . ५
स्पर्श प्रभु का जो जल पाए वो जल भी सब रोग मिटाए
पद्मावती है संकटचूरण धरण इंद्र है कामित पूरण . ६
एलचपुर का राजा श्रीपाल कुष्ठ रोग से था बेहाल
उस कूंवे का पानी लगाया रोग गया और आरोग्य पाया . ७
नृप ने देव से प्रतिमा मांगी लेकिन देव था प्रभु का रागी
बिंब देने वो न हुआ तैयार अब नृप करे उपवास स्वीकार . ८
धरण इंद्र ने यह तप जाना प्रसन्न बन नृप आग्रह माना
कच्चे धागे की डोली बनाई उस में मूर्ति को बैठाई . ९
मूर्ति बाहर आई मनोहर देव कहे अब सुन राजेश्वर
सात दिनों का बछड़ा मँगाओ उस से बैल गाड़ी बँधवाओ . १०
वाहन अपनेआप चलेगा अँधेरे में दीप जलेगा .
पीछे मुड़कर देखना नाही आगे तुम बैठो धुरवाही . ११
राजा वैसे ही करे प्रयाण मूर्ति में ज्यूं जागे प्राण
सर सर सर गाड़ी चली आगे मूरत का कोइ वजन न लागे . १२
वन कें वृक्ष वृक्ष करे वंदन धरती पवन में जागे स्पंदन .
हिंगोली से एलचपुर जा रहे देव प्रभु की महिमा गा रहे . १३
राजा के मन शंका आई मूर्ति मैंने गाड़ी में बैठाई .
ताको कोई भार नहीं आवे बछडा़ आराम से कैसे जावे . १४
मूर्ति साथ में है या नहीं है राजा के मन चिंता यहीं है .
व्याकुल भाव से पिछे विलोके तत् क्षण देव मूर्ति को रोके . १५
प्रतिमा पिछे रूक कर रह गई खाली गाड़ी आगे बह गई
धरती से एकदम ही ऊपर हुए बिराजित पास जिनेश्वर . १६
गगन प्रदेश में स्थिरता बनाई अंतरिक्ष नाम से ख्याति पाई
चमत्कार जग को दिखलाया दशो दिशा में डंका बजाया . १७
देव कहे तुम सुनो नरेश चैत्य रचो तुम इसी प्रदेश
मूरत आगे नहीं आएगी मूर्ति प्रतिष्ठा यहीँ पाएगी . १८
राजा मंदिर भव्य रचायो मन कर्तृत्व का घमंड आयो
मूर्ति मंदिर में नहीं आवे घमंड नृप का खंडित थावे . १९
जहां मूरत वहां विरच्यो मंदिर प्रभु अपनी ही जगह हुए स्थिर
लाखों लोग दर्शने आवे देव देवी प्रभु महिमा गावे . २०
ग्यारह बयालीस संवत सुहावे प्रतिमा पुण्य प्रतिष्ठा पावे
महा सुदी पंचमी दिन गायो अंतरिक्ष प्रभु ध्वजा चडायो. २१
सकल जीव को सुख देते हैं मोक्ष मार्ग सन्मुख लेते हैं .
प्रभु आश्रय में जो भी आएं रिद्धि वृद्धि कल्याण वो पाएं . २२
भारतवर्ष में महिमा व्यापे तीन लोक प्रभु गीत आलापे .
रोग शोक संताप मिटाये भूत प्रेत भय दूर भगाये . २३
अंतरिक्ष यात्रा को आवो दर्शन से वांछित फल पावो .
पूजन से महापुण्य कमावो ध्यान से सत् चिद् आनंद पावो . २४
भोगी की भोग भूख हरत है रोगी के रोग दूर करत है .
योगी को महा सिद्ध बनावे अंतरिक्ष प्रभु अलख जगावे . २५
कविवर भावविजय मुनिरायो कर्मोदय से दृष्टि गंवायो
अंध मुनि बहु चिंता पायो गुरुवर ने तप मार्ग बतायो . २६
अट्ठम तप तब मुनि आराधे पार्श्वमंत्र मुनि भावे साधे .
प्रगट हुई पद्मावती माता बोली पारस देंगे शाता . २७
पाटण से छरी पालित संघ निकल्यो तपजप प्रचंड रंग
पहुंचे अंतरिक्ष दरबारे प्रभु साचो आश्रय संसारे . २८
भावविजय प्रभु सामने आये अंध नयन से आँसू बहाये .
प्रभु ने आँख में तेज पुरायो अंधअवस्था नाथ मिटायो . २९
जयजय कार जगत में गाजे पारसनाथ की बधाई बाजे .
हरखे सुरवर मुनिवर बहु नर जीर्णोद्धार करावे मनोहर . ३०
सत्रहसो पंद्रह की साल चैत्र सुदी छठ मंगलमाल
नूतन मंदिर पार्श्व बिराजे श्याम सुंदर प्रतिमा छाजे . ३१
सूरज जैसा तेज है मुख पर चंद्र समान शीतलता सुंदर
अधर ऊपर विलसे मृदु हास नयन में जागृत ज्योति निवास . ३२
कमल पत्र सम रमणीय कान मेरुश्रृंग सम शिखा महान
अष्टमी शशी सम चमके भाल करूणा रस मय कोमल गाल . ३३
कंठ सदा अमृत रस धारी वक्ष विशाल हृदय अविकारी
स्कंध समुन्नत महाबलवंत गंभीर नाभि ज्ञान अनंत . ३४
कोमल कमर है सत्त्व निधान रमणीय है कटिबंध निशान .
अर्ध पद्मासन मुद्रा महान कर पद अंगुली हरे मद मान.३५
पूनम रात में नभ ज्यूं चमके श्यामल मूर्ति तेज त्यूँ दमके .
अंखिया देखत ही रह जाती आनंद की धारा बह जाती . ३६
प्रभु का रूप अनूप सोहावे वर्णन कोउं नहीं कर पावे .
जो देखे सो डूब ही जावे तन मन धन जल अन्न भुलावे . ३७
प्रभु कलिकाल में कल्प तरु सम प्रभु की शक्ति अदभुत अनुपम .
था जब मुनिसुव्रत का शासन तब यह मूर्ति बनी मनभावन . ३८
आज भी प्रभाव दिव्य ठहरायो लाखों लोग ने अनुभव पायो
एकतान मन जाप करीजे ऋद्धिमंत ऐश्वर्य वरीजे . ३९
भारत देश महाराष्ट्र राज विदर्भ में शिरपुर शिरताज .
अंतरिक्ष भगवान को वंदन अश्वसेन वामा के नंदन . ४०
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( दोहरा )
वाराणसी में च्यवन जन्म दीक्षा केवल ज्ञान
समेत शिखर से मोक्ष गये देवर्धि दायक भगवान .
श्री अंतरिक्ष चालीसा जो पढे प्रातःकाल
उसको जीवन में मिले सुख सौभाग्य विशाल .
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