१ .
आप पैसों में से नए पैसे बनाते हो वो जैसे दुनियादारी हिसाब से आवश्यक है वैसे आप वर्तमान पुण्य में से नया पुण्य बनाए यह भी साधना की भूमिका से आवश्यक है . अपने पुण्य के कारण ही आप स्वस्थ , सुखी और संतुलित जीवन जी रहे हो . पुण्य होता नहीं था तो आप अस्वस्थ , दुःखी और असंतुलित जीवन जीते होते थें . अब आप की जिम्मेदारी बनती है नया पुण्य उपार्जन करने की . शबरी की कथा से सिखने मिलता है कि –
पुण्य की तीन गति होती हैं .
एक , आप पुण्य का सद् उपयोग करते हुए अधिक से अधिक सत्कार्य करते हैं . जैसे एक छोटे दीपक से हजारो दीपक जलाये जा सकते हैं वैसे थोड़े से पुण्य में से विशाल पुण्य का नव उपार्जन हो सकता है . पुण्य वो शक्ति है जो मृत्यु के बाद भी साथ देती है .
दो , आप पुण्य का असद् उपयोग करते हुए स्वार्थ और अहंकार के कार्य करते हैं . जैसे थोडा सा कचरा , विशाल जलराशि को गंदा कर देता है वैसे स्वार्थ भाव और अहंकार से पुण्य का बल क्षीण हो जाता है . याद रखना कि आनंद प्रमोद से पुण्य का केवल व्यय होता है , उपार्जन बिलकुल नहीं होता है . वर्तमान पुण्य खत्म हो जाये उसके पूर्व नया पुण्य बना लेना जरूरी है . अन्यथा पुण्य उपार्जन करना असंभव हो जायेगा .
तीन , आप पुण्य का दुरूपयोग करते हुए दुष्ट और अनुचित प्रवृत्ति करते हैं जिस से पाप कर्म का बंध होता है और भविष्य में दुर्गति होती है . आप को ऐसी गलती करनी नहीं चाहिए . मृत्यु के बाद पाप कर्म साथ में आता है और आगामी जन्मों को दुःख से भर देता है .
सारांश यह है कि आप पुण्य में से पुण्य का उपार्जन करें . आप पुण्य को स्वार्थ की प्रवृत्तिओं में खत्म न करें . आप पुण्य में से पाप का सर्जन न करें .
२ .
आप को बार बार क्रोध आता हैं ?
एक प्रयोग करना . जब आप गुस्से में नहीं हो तब खुद को बारबार सूचना देते रहो कि – मुझे गुस्सा नहीं करना चाहिए . खुद को सूचना देने से परिवर्तन आता है . आप को जब गुस्सा आता है तब आप खुद को सूचना देने के काबिल नहीं होते हैं . तब आप आवेश में होते हो . एक बार आवेश आ गया फिर उसे रोकना मुश्किल हो जाता है . आप आयने में जब खुद का चहेरा देखे तब खुद से बात करते हुए बोले कि तुझे गुस्सा नहीं करना चाहिए . थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन यह प्रयोग परिणाम दायी है . आप ने जो सूचना खुद को बारबार दी है वह संस्कार बनकर अंदर जमा हो जाती है . आखिर कार वही बात अंदर की आवाज़ बन जाती है . बाद में यह होगा कि आप जब गुस्सा आ रहा होगा तो यह आवाज़ अंदर से आप को पुकार देगी कि – रुक जा , तुझे गुस्सा नहीं करना है . आप बाहर से सम्यक् सूचना अंदर भेजो . फिर आप को अपनी अंतरात्मा ही गुस्सा करने से रोकने लगेगी . एंगर मैनेजमेंट का सारांश यही है .
दूसरा प्रयोग यह है कि – आप के सुख का कारण जो जो लोग बने है उनको मन से धन्यवाद देते रहो . आप जिसके ऊपर गुस्सा करते रहते हो वह कभी न कभी आप के सुख का निमित्त बना ही होगा . जिसके कारण आप को सुख मिला उसपर गुस्सा करना कितना उचित है ? आप अन्य के प्रति जितना अधिक आदरभाव बनाते रहोगे उतना ही आपका क्रोध कम होता जाएगा .
कुछ दिनों तक दोनों प्रयोग करते हो . अच्छा परिणाम जरूर देखने मिलेगा .
३ .
जीवन क्यां है ? जीवन में क्यां करना चाहिए ?
दो सवाल हैं . दोनों ही सवाल बहोत बड़े हैं , जितनी बार पूछे जाएं उतनी बार नये जवाब मिलते रहते हैं . एक जवाब यह है कि जीवन स्व सुधार की अनंत प्रक्रिया है और जीवन में जितना हो सके उतना स्व सुधार करना चाहिए .
सभी को लगता है कि मैं सर्व गुण संपन्न हूँ .
सभी को लगता है कि मेरी कोई गलती नहीं है .
सभी को लगता है कि मैं एक अच्छा आदमी हूँ .
सभी को लगता है कि मैं जैसा हूँ वैसा ही ठीक हूँ .
जिसे लगता है कि मैं सर्व गुण संपन्न हूँ उसे खुद का दोष दिखता नहीं है . जिसे लगता है कि मेरी कोई गलती नहीं है वह खुद की गलती को समझ भी नहीं सकता है और सुधार भी नहीं सकता है . जिसे लगता है कि मैं एक अच्छा आदमी हूँ वह खुद की कमझोरी के बारे में सोच नहीं पाता है . जिसे लगता है कि मैं जैसा हूँ वैसा ही ठीक हूँ वह स्व सुधार के लिये तैयार नहीं हो सकते है .
खुद के दोष पर नझर रखना सीख लो .
खुद की गलती का स्वीकार करने की हिंमत रखो .
खुद की एक एक कमझोरी को याद रखते जाओ .
खुद को बदलने / सुधारने की संभावना को भूलो मत .
यहीं जीवन का सही रास्ता है . दिन प्रतिदिन खुद को बहेतर से बहेतर बनाते जाओ . दिन प्रतिदिन खुद को ऊपर से ऊपर बढाते जाओ . सभी महान् लोगों ने यही रास्ता अपनाया है .
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