नवपद की आराधना के नव आंबेल हम हर साल करते आएं हैं . संघ में आंबेल खाता होता है इसमें हमारी आंबेल की व्यवस्था हो जाती है . इस साल आंबेल खाता बंध है . ३१ मार्च , चैत्र सुदी सातम से नव दिन के लिए नवपद ओली शुरू हो रही है . सोचा था कि आंबेल खाता से टिफिन व्यवस्था करेंगे लेकिन वह भी संभवित नहीं है . पक्का हो गया है कि आंबेल घर में ही करना पडेगा . हमें आंबेल की आदत है लेकिन आंबेल का भोजन बनाने की आदत नहीं है . ओली का प्रारंभ हो उसके पूर्व हम आंबेल का भोजन बनाने की पद्धति सिख सकते हैं . आंबेल में – दूध, दही, घी, तेल , गुड सक्कर , तली हुईं चीजें, वनस्पति एवं ड्राय फ्रूट्स का सर्वथा त्याग किया जाता है . अतः आंबेल का भोजन बनाना सरल नहीं होता है .
सबसे पहली बात यह है कि
आंबेल का भोजन बनाना जो जानते हैं उनसे बराबर बातचीत कर लो . आप बात करेंगे उसके बाद कुछ बनाने की कोशिश करेंगे . आप कोशिश शुरू करेंगे उसके साथ ही कोइ दिक्कत आएगी . तब आप वापिस उनसे चर्चा कर ले जो आंबेल का भोजन बनाना जानते हैं . ऐसे बार बार होगा तब जाके आप आंबेल का भोजन बनाना सिख पाओगें . यह प्रेक्टिस बहोत जरूरी है . याद रखना . ओली के पहले दिन से प्रेक्टिस शुरू करोंगे तो भारी गड़बड़ हो जाएगी . प्रेक्टिस अभी से शुरू करनी होगी .
दूसरी बात यह है कि
आप अच्छी तरह से आंबेल का भोजन बनाना सिख गए उसका फायदा बड़ा है . आप अपने स्वजन , संबंधीओं को आंबेल की प्रेरणा दे सकेंगे . जिसने आंबेल किया है उसकी भक्ति का लाभ भी आप को मिलेगा .
तीसरी बात यह है कि
आप स्वयं आंबेल करना चाहते हैं तो आप को अन्य पर अवलंबित रहनेकी जरूरत नहीं रहेगी . अपने आंबेल की व्यवस्था आप खुद कर पाएंगे .
चौथी बात यह है कि
कोई अपने घर में अकेला है और उससे आंबेल होता नहीं है तो आप उसको व्यवस्था पहुंचा सकते हैं . व्यवस्था पहुंचाने से बड़ा पुण्य मिलता है
पांचवी बात यह है कि
हमारे साधू साध्वीजी भगवंत में से किसी गुरुवर को आंबेल हो तो हमारे हाथों बनी रसोई से हम गोचरी का महान् लाभ ले सकते हैं .
छठी बात यह है कि
जो आंबेल करते नहीं हैं उन्हें अंदाज़ा भी नहीं होता है कि आंबेल में क्यां क्यां बन सकता है . आप ने आंबेल के लिए जो बनाया है उसे देखकर वाॅ लोग भी आंबेल के लिये उत्साहित हो सकते हैं .
सातवीं बात यह है कि
जो आंबेल नहीं कर रहा है उसे भी आप आंबेल का भोजन पिरोस सकते हैं . डिन ओर्निश जैसे विश्व विख्यात चिकित्सक का कहना है कि जैनियों के आंबेल का मेनु , आरोग्य की दृष्टि से सर्वोत्तम है . जो तप नहीं कर सकता है उसे भी रसत्याग का लाभ मिलेगा .
आठवीं बात यह है कि
आप ने इस साल जो आंबेल का भोजन बनाना सिख लिया वह प्रशिक्षण आप को जीवनभर के लिए अलग अलग प्रसंगों में काम आएगा . आप आंबेल करते हैं वह आपका व्यक्तिगत धर्म है . आप अन्य को आंबेल करवाते हैं यह आपका सामूहिक धर्म है . सामूहिक धर्म बड़ा शक्तिशाली होता है .
जैन महाभारत के अनुसार जब द्वारिका नगरी पर संकट आया था तब घर-घर में आंबेल होते रहें थें . आज हम पौराणिक इतिहास का पुनरावर्तन कर सकते हैं .
घर घर में आंबेल होना चाहिए .
घर घर में आंबेल का भोजन उपलब्ध रहेना चाहिए .
इसके लिए जरूरी है कि आज से ही घर घर में आंबेल का रिहर्सल शुरू होना चाहिए . गृहस्थ को घर संसार चलना ही पड़ता है . घर में ही आंबेल करने से संसार को सात्त्विकता का स्पर्श मिलेगा .
आंबेल के दिन आ रहे हैं : आज से ही आंबेल के भोजन संबंधी रिहर्सल शुरू कर दो
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