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श्री उत्तराध्ययन सूत्र कें १०८ संदेश

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१ . विनय-श्रुत अध्ययन

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१ . स्वजन संबंधीओं की धार्मिक इच्छा का सन्मान करें .

२ . बुज़ुर्ग जनों की भावनाओं को आहत न करें .

३ . अन्य के दुष्ट वचन सुनकर मन को अशांत न होने दें .

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२ . परिषह प्रविभक्ति अध्ययन

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१ . दुःख आने पर सोचे कि मेरे पाप का नाश हो रहा है .

२ . सुख से आकर्षित होकर किसी धर्म प्रवृत्ति को  छोड़ न दे .

३ . जिस के कारण दुःख मिला उसपर द्वेष न बनाए .

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३ . चतुरंगीय अध्ययन

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१ . प्रतिदिन कुछ नया धर्मबोध उपार्जित करें .

२ . धर्म श्रद्धा का स्तर ऊपर ऊपर बढ़ाते रहें .

३ . जो धर्म बाकी है उसे करने का लक्ष बनाए रखें .

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४ . असंस्कृत अध्ययन

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१ . धर्म क्रिया के प्रति आलस्य भाव न रखें .

२ . क्रोध – मान – माया – लोभ को कम करने के लिए मानसिक पुरुषार्थ करें .

३ . धार्मिक प्रवृत्ति को दोष रहित बनाए रखें .

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५ . अकाम मरणीय  अध्ययन

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१ . कुछ समय सुख सामग्री के बिना खुश रहने की आदत बनाए .

२ . किसी एक दो दुःख को हसते हसते सहने की कोशिश करें .

३ . रात को सोने से पूर्व – वोसिरामि – का प्रयोग करें .

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६ . क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय अध्ययन

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१ . परिवार जनों पर का  ममता भाव एवं अधिकार भाव कम करें .

२ . वस्त्र , बर्तन , साज , असबाब की ममता कम करें .

३ . स्व शरीर के प्रति आसक्ति कम करने का लक्ष बनाए .

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७ . उरभ्रीय अध्ययन

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१ . अनावश्यक पापों  को छोड़ने का प्रयत्न करें .

२ . भौतिक आनंद प्रमोद की प्रवृत्तियों को कम करें .

३ . धर्म प्रवृतिओं में आनंद की अनुभूति बनाए .

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८ . कापिलीय  अध्ययन

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१ . हंमेशा सोचिये कि मुझे मरने के बाद दुर्गति में नहीं जाना है .

२ . धन संचय की इच्छाओं का कोइ  अंत नहीं है , याद रखें .

३ . कुछ खुशिया ऐसी भी है जिसमें धन का योगदान नहीं है .

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९ . नमि प्रव्रज्या अध्ययन

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१ . मुझे संघर्ष और संक्लेश से दूर रहना चाहिए .

२ . आकांक्षाओं  को कम करने से संक्लेश कम हो जाते है .

३ . निसंग भाव और एकांत निवास से आत्म शुद्धि बढती है .

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१० . द्रुम पत्रक अध्ययन

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१ . अप्रशस्त राग एवं उसके आलंबन से बचना चाहिए .

२. प्रशस्त राग एवं उसके आलंबन के साथ जुड़े रहना चाहिए .

३ . राग रहित मनोदशा के लिए विशेष मन: शुद्धि  करनी चाहिए .

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११ . बहुश्रुत पूजा अध्ययन

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१ . धर्म का ज्ञान बढ़ाते रहे लेकिन धर्म-ज्ञान का अहंकार न करें .

२ . ऐसा बोध हांसिल कीजिये कि मोक्ष के विषय में अधिक चिंतन कर सके .

३ . ज्ञानी की निंदा न करें .  ज्ञानी की सेवा का लाभ ले .

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१२ . हरिकेशीय अध्ययन

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१ . व्रत और नियम का पालन करें .

२ . स्वयं के सद् गुणों का विकास करते रहे .

३ . व्रतपालक साधू साध्वी को अतिशय आदर दे .

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१३ . चित्र संभूतीय अध्ययन

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१ . व्रत की विराधना से बड़ा पाप लगता है .

२ . अव्रत के परिहार से बड़ी कर्म निर्जरा होती है .

३ .  आत्मिक संतोष की अनुभूति के लिए काम भोग से दूर रहे .

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१४. इषुकारीय अध्ययन

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१ . पूर्व जन्म एवं पुनर्जन्म में पूर्ण विश्वास रखना चाहिए .

२ . धर्मक्रियाओं के द्वारा शुभ भावना का निर्माण करना चाहिए

३ . परिवार के लिये धर्म की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए .

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१५ . सभिक्षु अध्ययन

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१ . वैराग्य गर्भित ज्ञान से आत्मा को लाभ होता है .

२ . क्रिया युक्त श्रद्धा से आत्मा का उद्धार  होता है .

३ . व्रत एवं नियम की दृढ़ता रखनेसे आत्मा की शुद्धि होती है .

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१६ . ब्रह्मचर्य समाधि स्थान अध्ययन

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१ . विजातीय तत्त्व का आकर्षण , तीव्र पाप का निर्माण करता है .

२ . अब्रह्म का सेवन वासना और विराधना को बढ़ता है .

३ . ब्रह्मचर्य के पालन से पाप , वासना एवं विराधना पर बड़ा अंकुश आ जाता है .

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१७. पाप श्रमणीय अध्ययन

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१. शरीर का रोग लाचारी है . शरीर का राग दोष है .

२. साधना कें नियम अखंड रहे यह जरूरी है .

३. दोषवान् के लिये अनुकंपा के भाव रखो , द्वेष मत रखो .

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१८. संयतीय अध्ययन

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१. अशुभ मनोभाव को जीतने के लिये साधु का मार्गदर्शन अनिवार्य है .

२.दीर्घकालीन व्रत पालन से आगामी भव में तीव्र वैराग्य  मिलता है .

३. दीर्घकालीन अव्रत पालन से आगामी भव में तीव्र राग द्वेष मिलते हैं .

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१९ . मृगापुत्रीय अध्ययन

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१. अन्य कें दुःख को देखकर कर्मोदय  विषय में चिंतन करें .

२. पाप करते समय याद करें कि इस का फल भयंकर होगा .

३ . पाप का प्रामाणिक पश्चाताप पाप की ताकत को तोडते है .

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२०. महानिर्ग्रंथीय अध्ययन 

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१. भौतिक सामग्री में सच्चा एवं स्थायी सुख नहीं है .

२. आत्म निमज्जन के लिये काउसग्ग का अध्यास जरूरी है .

३. इच्छा की स्वयं स्फूर्त उपेक्षा से साधना बढती है .

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२१‌ . समुद्र पालीय अध्ययन

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१ . उपसर्ग को सहन करने से कर्म निर्जरा होती है .

२ . अशुभ विचार को रोकने हेतु विशेष पुरुषार्थ अपेक्षित है .

३ . जो समय धर्म के साथ जुड़ता है वह सफल है , शेष समय विफल है .

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२२ . रथनेमीय अध्ययन

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१ . अन्य को धर्म में अस्थिर बनाने से पाप लगता है .

२ . अन्य को धर्म में स्थिर बनाने से पुण्य  मिलता है .

३ . खुद की गलती को सुधारना यह उत्तम कार्य है .

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२३ . केशी गौतमीय अध्ययन

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१ . मतभेद को द्वेष का हेतु नहीं बनाना चाहिए .

२ . अन्य को सन्मान देने से धर्म की शक्ति बढ़ती  है .

३ . साधु की प्रशंसा  सबसे श्रेष्ठ धर्माचार है .

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२४ . प्रवचनमाता अध्ययन 

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१ . जीव विराधना का भय आत्मा को पवित्र बनता है .

२ . वाणी को सौम्य रखने से शांति और शुद्धि  की शक्ति बढ़ती है .

३ . मन को जिन आज्ञा के चिंतन में जोड़ो .

जीवन को जिन आज्ञा के पालन में जोड़ो .

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२५ . यज्ञीय अध्ययन 

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१ . पांच अव्रत आत्मा के सब से बडे शत्रु हैं .

२ . अन्य के प्रति द्वेष रखना यह उत्कृष्ट दुःख है .

३ . संयम और तपस्या से पूर्व कर्म का नाश होता है .

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२६ . सामाचारी  अध्ययन 

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१ . क्रिया एवं स्वाध्याय को गुरु के मार्गदर्शन अनुसार करे .

२ . संघ की व्यवस्था का सन्मान करे , अव्यवस्था का निर्माण न करे .

३ . संघ के एक भी व्यक्ति के लिए दुर्भावना न रखें .

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२७ . खलुंकीय अध्ययन

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१. अन्य के प्रति ईर्ष्या रखने से खुद की खुशी का नाश होता है .

२. ज्ञान दाता के समक्ष अत्यधिक दलीलबाजी और स्वालबाजी न करें .

३ . खाने पीने का शौख धार्मिकता को शिथिल बना देता है .

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२८ . मोक्ष मार्ग गति  अध्ययन

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१ . आत्मा के विषय में अधिक से अधिक ज्ञान उपार्जन करें .

२ . मोक्ष प्राप्ति के विषय में अधिक से अधिक  उत्कंठा बनाए .

३ . चारित्र एवं तप में सविशेष पुरुषार्थ करें .

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२९ . सम्यक्त्व पराक्रम  अध्ययन 

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१. साधर्मिक की भक्ति करते रहें .

२. पाप की आलोचना एवं प्रायश्चित्त विधि का स्वीकार करे .

३.प्रतिदिन प्रतिक्रमण करें .

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३० . तपो मार्ग गति अध्ययन 

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१ . आहार संबंधी चार तप को आचरण में लाए .

२ . कायक्लेश संबंधी दो तप को आचरण में लाए .

३ . छह अभ्यन्तर तप को विकसित करें .

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३१ . चरण विधि अध्ययन

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१ . अर्थ कथा , काम कथा , भक्त कथा , राज कथा से दूर रहे .

२ . आहार  संज्ञा , भय संज्ञा , मैथुन संज्ञा , परिग्रह संज्ञा को अंकुश में रखें .

३ . आर्त ध्यान और रौद्र ध्यान से बचने का लक्ष्य बनाए .

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३२ . प्रमाद स्थान अध्ययन

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१ . अभक्ष्य आहार एवं पेय का त्याग करें .

२ . मन वचन काया एवं दृष्टि को संयम से बांधने की कोशिश करें .

३ . पांच इन्द्रिय के आनंद की अभिरुचि काम करें .

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३३. कर्म प्रकृति अध्ययन

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१ . आठ कर्म के बंध हेतुओं को जान ले और उस विषय में  जागृत रहें .

२ . चार कषाय एवं नव नोकषाय को अंकुश में रखने का पुरुषार्थ करें .

३ . कर्म क्षय निमित्त विशेष काउसग्ग करें .

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३४ . लेश्या अध्ययन

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१ . नियमित शुभ श्रवण के द्वारा शुभ भाव में डूबे रहने से लेश्या सुधरती है .

२ . नियमित शुभ दर्शन , शुभ वांचन एवं शुभ समागम से लेश्या सुधरती है .

३ . गलत सोच जगाने वाले व्यक्ति एवं निमित्त से दूर रहे .

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३५ . अणगार मार्ग गति अध्ययन

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१ . पांच महाव्रत का विस्तृत अभ्यास करें .

२ . दशविध मुनिधर्म का विस्तृत बोध प्राप्त करें .

३ . शारीरिक एवं मानसिक सहनशीलता को बढ़ाए .

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३६ . जीवाजीव विभाग अध्ययन 

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१ . षट् जीवकाय की विराधना से कैसे बचा जाए – इस का चिंतन करें .

२ . किसी भी जीव विराधना की अनुमोदना न करें .

३ . दैनिक जीव विराधना के लिए भाव पूर्वक मिच्छा मि दुक्कडं का प्रयोग करें .

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By पू.मुनिराज श्री प्रशमरतिविजयजी म .

 

 

 

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