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नवजात संतान को देव और गुरु के साथ जोडना चाहिए

 

नवजात संतान

श्री श्राद्धविधि ग्रंथ में फ़रमाया है कि –

जैन परिवार में आनेवाली संतान की सर्वप्रथम जिनपूजा को उत्सव का रूप मिलना चाहिए . जन्म लेने के बाद बालक जब पहेली बार जिनालय में आता है तो माबाप , उसके हाथों अष्टप्रकारी पूजा करवाते हैं , उत्सव मनाते हैं एवं विशेष मंत्रजाप करते हुए भगवान् को प्रार्थना करते है कि –

हमारे परिवार में यह जो नया जीव आया है वह आप की ही कृपा से आया है . इसे जो सांसे मिली है यह आप का उपकार है , इस पर आप ऐसी कृपा बरसाना कि आप को वह हर साँसों में याद रखें . आज यह बाल प्रथम बार आप को स्पर्श कर रहा है , आप ऐसी कृपा रखना कि आप को वह प्रतिदिन स्पर्श करे एवं आप की अनंत ऊर्जा का अंश उसे हंमेशा मिलता रहे .

श्री श्राद्धविधि ग्रंथ में यह भी फ़रमाया है कि
नवजात बालक को प्रतिदिन गुरु भगवंत के पास ले जाना चाहिए . गुरु भगवंत के श्रीमुख से हो रहे मंत्रोच्चार का श्रवण करने से पवित्र संस्कार का निर्माण होने लगता है , जिससे संतान का भविष्य सात्त्विक बनता है .

आप भी अपने घर में जब नई संतान आए तो उसे देव और गुरु , दोनों से अच्छी तरह जोड़ना .

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