धर्म क्रिया एवं धार्मिक कार्यों के लिए उत्साही रहना चाहिए .
धार्मिक नीति नियमों की तनिक भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए .
१ .
धर्म क्रियाओं को दोष रहित बनाए रखनी चाहिए .
+ जिन मंदिर संबंधी ८४ आशातनाओं का बोध हांसिल करके सभी आशातनाओं का त्याग करना चाहिए .
+ गुरु संबंधी ३३ आशातनाओं का बोध हांसिल करके सभी आशातनाओं का त्याग करना चाहिए .
+ सामायिक के ३२ दोषों का बोध हांसिल करके सभी दोषों का त्याग करना चाहिए .
+ काउसग्ग के १९ दोषों का बोध हांसिल करके सभी दोषों का त्याग करना चाहिए .
२ .
धार्मिक व्यवस्थाओं में सहयोगी बनना चाहिए .
धार्मिक स्थानों में धार्मिक व्यवस्थाओं के लिए समय समर्पित करना चाहिए . देव द्रव्य , गुरु द्रव्य , ज्ञान द्रव्य , साधारण द्रव्य आदि विषयक आर्थिक व्यवस्था में नियम भंग नहीं होने देना चाहिए .
३ .
जैन स्थानों में सेवाएं देनी चाहिए .
+ जैन स्थानों में हो रही बैठक व्यवस्था , निवास व्यवस्था , भोजन व्यवस्था , जल व्यवस्था में सहयोग देना चाहिए एवं वहां पर जैनाचार एवं यतना का यथा संभव अधिक से अधिक पालन हो इस का ध्यान रखना चाहिए .
+ जैन संघ हस्तक शोभा यात्रा , महोत्सव , अनुष्ठान आदि आयोजन होते है उसमें सहयोग देना चाहिए एवं वहां पर जैनाचार एवं यतना का यथा संभव अधिक से अधिक पालन हो इस का ध्यान रखना चाहिए .
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स्वाध्याय –
१ . आज्ञा अनुसारिता का अर्थ क्यां होता है ?
२ . आज्ञा अनुसारिता का प्रथम नियम क्यां है ?
३ . आज्ञा अनुसारिता का द्वितीय नियम क्यां है ?
४ . आज्ञा अनुसारिता का तृतीय नियम क्यां है ?
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