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जैन सिलेबस : दर्शन आचार . ६ : स्थिरी करण

20190523_092235जो देव गुरु धर्म से दूर हो चुके हैं उन्हें देव गुरु धर्म के साथ पुनः जोडने के लिये जो कोशिश की जाती है उसे स्थिरी करण कहते है . अस्थिर को स्थिर बनाना वह स्थिरी करण है .
तीन बातें समझ लेनी चाहिए . 

१ .
एक व्यक्ति है जिसने किसी कारण वश , धार्मिक स्थान में आना छोड़ दिया है , उसे समझाकर वापिस धार्मिक स्थान में आने के लिए प्रेरित करना वह स्थिरी करण है . 
जो भी धार्मिक स्थान से दूर हो गया है उसे वापिस धार्मिक स्थान के साथ जोड़ना चाहिए .यह स्थिरी करण आचार है .

२ .
+ एक व्यक्ति है जिसने किसी कारण वश ,
गुरुभगवंत के पास आना छोड़ दिया है –
उसे समझाकर वापिस गुरू भगवंत के पास आने के लिए प्रेरित करना वह स्थिरी करण है .
+ एक व्यक्ति है जिसने किसी कारण वश ,
ट्रस्टी अथवा साधर्मिक के साथ नाराजगी बना ली है उसे समझाकर वापिस ट्रस्टी अथवा साधर्मिक के साथ जुडने के लिये प्रेरित करना वह स्थिरी करण है .

३ .
एक व्यक्ति है जिसने किसी कारण वश ,
धर्म को या व्रत नियम को छोड़ दिया है –
उसे समझाकर वापिस धर्म प्रवृत्ति या व्रत नियम के साथ जोड़ना वह स्थिरी करण है .

स्थिरी करण के पालन से बहोत बड़ा पुण्य मिलता है .

स्वाध्याय –

१ . स्थिरी करण किसे कहते है ?
२ . स्थिरी करण का प्रथम नियम क्यां है ?
३ . स्थिरी करण का द्वितीय नियम क्यां है ?
४ . स्थिरी करण का तृतीय नियम क्यां है ?

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