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जैन सिलेबस : ज्ञान आचार .६ : व्यंजन

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प्रत्येक धर्म के अपने अपने मूल ग्रंथ होते हैं .
जैन धर्म के मूल ग्रंथ को आगम सूत्र कहते हैं .
प्रत्येक धर्म के अपने अपने क्रिया कलाप होते हैं
एवं क्रिया कलाप के विविध सूत्र होते हैं .
जैन धर्म के अपने क्रिया कलाप हैं एवं
क्रिया कलाप के विविध सूत्र हैं .
प्रत्येक धर्म के अपने अपने गेय पद होते हैं .
जैन धर्म के अपने गेय पद हैं जिन्हें
स्तवन , सज्झाय , स्तुति कहा जाता हैं .
सूत्र एवं गेय पदों के अक्षरों को व्यंजन कहा जाता है .

व्यंजन आचार को समझने के लिये
तीन बातें याद रखनी चाहिए .

१ .
अधिक से अधिक
सूत्र एवं गेय पदों को कंठस्थ करना चाहिए .
जिस सूत्र एवं गेय पद को कंठस्थ कर लिया है
उसका विस्मरण नहीं होना चाहिए .
२ .
जिस जिस सूत्र एवं गेय पद को कंठस्थ कर लिया है
उसे बोलते समय उच्चारण में
अशुद्धि , अस्पष्टता एवं त्रुटि नहीं आनी चाहिए .
३ .
गुरुवंदन , चैत्यवंदन , देववंदन,  प्रतिक्रमण
आदि क्रियाओं की विधि सीखनी चाहिए .
विधि सीखकर याद रखनी चाहिए .
———————
स्वाध्याय – 
१ . व्यंजन आचार किसे कहते हैं ?
२ . व्यंजन के विषय में  प्रथम बात क्यां है ?
३ . व्यंजन के विषय में द्वितीय बात क्यां है ?
४ . व्यंजन के विषय में तृतीय बात क्यां है ?

 

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